इकाई :1
आदिकाल हिंदी साहित्य का काल विभाजन
Learning Outcomes / अध्ययन परिणाम
|
Prerequisites / पूर्वापेक्षा
हिंदी साहित्य के इतिहास को तत्कालीन प्रवृत्ति के आधार पर विभाजित करने प्रयास आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने किया है । उनका कहना है कि हिंदी साहित्य का विवेचन करने में एक बात ध्यान में रखी है कि किसी विशेष समय में लोगों ने रुचि विशेष का संचार और पोषक किधर से और किस प्रकार से हुआ । उपर्युक्त व्यवस्था के अनुसार ,काल विभाजन किया |
Key Words / मुख्य बिंदु
समय सीमा,नामकरण, मत भेद, काल-विभाजन, काल विभाजन से संबन्धित विद्वानों के मत और मत भेद समझने का अवसर
Discussion / चर्चा
1.1.1 काल विभाजन
- हिंदी साहित्य के इतिहास के प्रारंभिक लेखकों – गार्सा द तासी , शिव सिंह सेंगर ने काल विभाजन की ओर कोई ध्यान नहीं दिया ।
- हिंदी साहित्य का इतिहास का काल विभाजन की परंपरा में , सर्वप्रथम जॉर्ज ग्रियर्सन ने प्रयास किया । ग्रियर्सन का ग्रंथ अध्याय में विभक्त है , प्रत्येक अध्याय सामान्य: एक काल का सूचक है । उनका काल विभाजन क्रम निम्नस्थ है :-
- चारण काल – 700 – 1300 ईं
- पुनर्जागरण काल – 15 वीं शताब्दी
- जायसी की प्रेम कविता
- ब्रज का कृष्ण संप्रदाय
- मुगल दरबार
- तुलसीदास
- रीति काव्य
- तुलसीदास के अन्य परवर्ती
- अट्ठारहवीं शताब्दी
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि यह काल विभाजन न होकर साहित्य के इतिहास के भिन्न – भिन्न अध्यायों का नामकरण है । इसमें काल क्रम की निरंतरता का भी अभाव है । इससे साहित्य की कपितय सीमित प्रवृत्तियों का ज्ञान तो हो जाता है किन्तु ऐतिहासिक चेतना का समग्र अवबोध संभव नहीं है ।
आगे चलकर मिश्र बन्धुओं ने ‘ मिश्र बिन्दु विनोद ‘ में काल विभाजन का प्रयास किया जो प्रकार है :-
- आरंभिक काल – (क) पूर्वारंम्भिक काल ( 700 – 1343 वि .)- ( ख ) उत्तराम्भिक काल ( 1344 – 1444 वि.)
- माध्यमिक काल – ( क )पूर्व माध्यमिक काल (1445 – 1560 वि. )- ( ख ) प्रौढ़ माध्यमिक काल (1561-1680 वि. )
- अलंकृत काल – (क ) पूर्वालंकृत काल ( 1681 – 1790 वि. )- (ख) उत्तरालंकृत काल ( 1791 – 1889 वि.)
- परिवर्तन काल – 1990 – 1925 वि.
- वर्तमान काल – ( 1926 वि . से अध्यावधि )
नि:सन्देह मिश्र बन्धुओं का वर्गीकरण ग्रिये्र्सन की अपेक्षा प्रौढ़ है किन्तु इसमें असंगतियों का सर्वथा अभाव नहीं है ।
सर्वप्रथम दोष तो यह है कि मिश्र बन्धुओं ने भी 700 से 1300 शती ईं के अपभ्रंश भाषा में निबद्ध साहित्य को हिंदी की परिधि में समेट लिया है । अलंकृत तथा परिवर्तन कालों का नामकरण भी वैज्ञानिक नहीं है ।
हिंदी साहित्य के इतिहास को कालविभाजन की दृष्टि सेे विभाजित करने का प्रयास आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने किया है । उनका कहना है कि हिंदी साहित्य का विवेचन करने में एक बात ध्यान में रखी है कि किसी विशेष समय में लोगों ने रुचि विशेष का संचार और पोषक किधर से और किस प्रकार से हुआ । उपर्युक्त व्यवस्था के अनुसार ,काल विभाजन किया ।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास को चार कालों में विभाजित किया है :-
- वीरगाथकाल – 1050 – 1375 ईं
- भक्ति कालाल ( पूर्व मध्यकाल ) – 1375 – 1700 ईं
- रीतिकाल ( उत्तर मध्यकाल ) – 1700 – 1900 ईं
- आधुनिक काल ( गद्य काल ) – 1900 – अब तक
इन कालों की रचनानाओं की विशेष्य प्रवृत्ति के अनुसार ही उनका नामकरण किया गया है । मिश्र बन्धुओं ने हमारे विवेच्य काल को आदिकाल के नाम से अभिहित किया, किन्तु शुक्ल जी ने इस युग में वीरगाथाओं की प्रमुखता को देखते हुए इसे वीरगाथा काल के नाम से पुकारा है । इसी प्रकार पूर्व मध्यकाल तथा उत्तर मध्यकाल में भक्ति और रीति की प्रमुख प्रवृत्तियों के आधार पर उन्हें क्रमशः भक्तिकाल तथा रीतिकाल के नामों से अभिहित किया है । आधुनिक काल में गद्य लेखन की प्रमुखता को देखकर उसे गद्य काल के नाम से अभिहित किया है ।
आचार्य शुक्ल ने परंपरा से प्राप्त आदि , मध्य और आधुनिक नामों के साथ – साथ
डॉ रामकुमार वर्मा ने अपने इतिहास ग्रंथ में हिंदी साहित्य का काल विभाजन इस प्रकार किया है: –
- संधि काल
- चारण काल } आदिकाल
- भक्ति काल ,
- रीतिकाल
- आधुनिक काल
- डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अनेक अनुसंधानों के बाद हिंदी साहित्य का काल विभाजन इस प्रकार किया :-
- . आदिकाल – [1000- 1400 के मध्य तक ]
- भक्तिकाल – [ 1400 मध्य से – 1600 के मध्य तक ]
- रीतिकाल – [ 1600 के मध्य से – 1900 के मध्य तक ]
- आधुनिक काल – [ 1900 के मध्य से – अब तक ]
- विद्वानों के मतभेद के कारण हम हिंदी साहित्य का काल विभाजन निम्नलिखित रूप में कर सकते है :-
- प्रारंभिक काल ( आदिकाल )- 1050 – 1375 ईं
- पूर्व मध्यकाल ( भक्तिकाल ) – 1375 – 1700 ईं
- उत्तर मध्यकाल ( रीतिकाल ) – 1700 – 1900 ईं
- आधुनिक काल – 1900 से अद्यावधि
लेकिन अधिकांश से विद्वान शुक्ल जी के मत से सहमत है ।आचार्य शुकल द्वारा साहित्यक इतिहास लेखन का प्रयास एक ऐसि नींव का पत्थर है जिसके बिना हिंदी साहित्य के इतिहास के भव्य महल का निर्माण अकल्पनीय है ।
चर्चा के मुख्य बिंदु
- काला विभाजन की समस्या
- विद्वानों के मतभेद
Critical Overview / आलोचनात्मक अवलोकन
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने काल विभाजन किसी युग विशेष में प्राप्त होने वाली रचनाओं में किसी प्रवृत्ति – विशेष की रचना की प्रचुरता के आधार पर किया है ।हिंदी साहित्य के प्रारंभिक काल में अपभ्रंश और हिन्दी भाषा की कुल 12 कृतियां प्राप्त हुई है ।इनमें वीरगाथात्मक कृतियों का बाहुल्य था ।
Recap / पुनरावृत्ति
|
Objective Questions / वस्तुनिष्ट प्रश्न
1. शुकल जी की पूरा नाम क्या था ? |
Answers / उत्तर
1. आचार्य रामचंद्र शुक्ल । |
Assignment / प्रदत्तकार्य
|
Self Assesment / आत्म मूल्याकन
|