Course Content
HISTORY OF HINDI LITERATURE
0/34
Environmental Studies
English Language and Linguistics
Introduction to Mass Communication
Private: BA Hindi
About Lesson

इकाई :1

भक्तिकालीन हिंदी साहित्य की प्रवृत्तियां और शैलियाँ

Learning Outcomes / अध्ययन परिणाम

  • भक्तिकाल के प्रमुख प्रवृत्तियों को समझता है |
  • भक्तिकालीन हिंदी साहित्य की विशेषताओं को समझता है |
  • भक्ति – भावना सम्बन्धी विचारों को समझता है |
  • भक्ति काल में ईश्वर की महत्ता को समझता है |

Prerequisites / पूर्वापेक्षा

भक्ति काल का दायरा काफी विस्तृत है । भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ भक्ति संबंधित है ।
भक्ति काल का मुख्य तत्व इश्वर भक्ति है । भक्ति काल के सारे कवि पहले भक्त हैं और बाद में कवि ।

Key Themes / मुख्य प्रसंग

नाम महिमा

गुरु की महत्ता

भक्तिभावना की प्रधानता

व्यक्तिगत अनुभव की प्रधानता

‌ अंह भाव का अभाव

साधु संगति का महत्व

स्वान्त: सुखाई रचना

लोक कल्याण की भावना

भारतीय संस्कृति के आदर्शों की स्थापना

समन्वयकारी साहित्य

4.1 Discussion / चर्चा

4.1.1 भक्ति काल की प्रमुख प्रवृत्तिया

4.1.1.1  नाम का महत्व:-

जप भजन, कीर्तन आदि के रूप में भगवान के नाम की महता संतो, सूफियों और भक्तों ने स्वीकार की है । सूफियों और कृष्णा भक्तों ने कीर्तन को बहुत महत्व दिया है। कीर्तन, भजन और जप आदि के रूप में ईश्वर का गुण गान सभी शाखाओं के कवियों में पाया जाता है। सभी कवियों ने अपने-अपने आराध्य के नाम का स्मरण किया है ।

4.1.1.2  गुरु महिमा :-

       ईश्वर अनुभवग्मय है। उसका अनुभव गुरु ही करा सकता है। इसलिए सभी भक्तों गुरु महिमा का गान किया है।  सूरदास, तुलसीदास ने भी गुरु की महिमा की है।  भक्तिकाल के  चारों काव्यधाराओं (संत, प्रेम, राम, कृष्ण) में गुरु महिमा पर सामान रूप से बल दिया है |

4.1.1.3  भक्तिभावना की प्रधानता:-

       भक्ति भावना की प्रधानता को भक्ति काल के सभी शाखाओं के कवियों ने स्वीकार किया है। भक्ति ज्ञान का प्रमुख साधन है |  इस समय की चारों काव्यधाराओं (संत, प्रेम, राम, कृष्ण) में ईश्वरराधना के लिए भक्ति पर बल दिया है |

4.1.1.4  व्यक्तिगत अनुभव की प्रधानता:-

    भक्ति काल के कवियों की रचनाओं में उनके व्यक्तिगत अनुभव की प्रधानता है। इस काल के प्राय: सभी कवि तीर्थ यात्रा या सत्संग कामना से प्रेरित होकर देश भ्रमण करने वाले थे। सूरदास के सूरसागर में व्यक्तिगत अनुभव की प्रधानता दी गई है। तुलसीदास पढ़े लिखे होने पर भी पुस्तक ज्ञान को महत्व नहीं देते। वे प्रेम और व्यक्तिगत साधना कोई प्रधानता देते है।

4.1.1.5 ‌ अहं भाव का अभाव:-

    मनुष्य के अहं भाव का जब तक विनाश नहीं होता तब तक वह भगवत प्राप्ति एवं मोक्ष से बहुत दूर रहता है। दीनता का आश्रय लेकर अन्य भाव से भगवान के शरण में जाने का उपदेश सभी भक्तों ने दिया है।

4.1.1.6  साधु संगति का महत्व:-

साधू संग का गुणगान सभी शाखाओं के कवियों ने किया है। कबीर का कथन है- “कबीर संगति साधुकी हरे और की व्यादी”

4.1.1.7  स्वान्त: सुखाई रचना:-

    भक्ति-साहित्य के प्रणेता संसार-त्यागी संत थे। वे आदिकाल या रीतिकाल के कवियों की तरह दरबारों में रहकर आश्रयदाताओं को प्रसन्न करने के लिए नहीं लिखते थे। आत्मतृप्ति के लिए उनका लेखन था। संतो एवं भक्तों का काव्य स्वामिनः सुखाय न होकर स्वान्तः सुखाय और बहुजन हिताय है। वह किसी राजा की फरमाइश पर लिखा जाने वाला साहित्य नहीं है। उसमें निश्छल आत्माभिव्यक्ति है। भक्ति काल की रचनाएं स्वान्त सुखाई रची गई है।

4.1.1.8  लोक कल्याण की भावना :-

    भक्तिकाल का साहित्य लोकमंगल के महान आदर्श द्वारा अनुप्राणित है। इसमें सत्य, उल्लास, आनन्द और युगनिर्माणकारिणी प्रेरणा है। भारतीय जनता उस युग में इस साहित्य से प्रेरणा और शक्ति पाती रही है, वर्तमान में भी उसे तृप्ति मिल रही है और भविष्य में भी यह उसका संबल बना रहेगा। तुलसीदास ने लोक कल्याण को ही साहित्य का मूल उद्देश्य माना है।

4.1.1.9  भारतीय संस्कृति के आदर्शों की स्थापना:-

    इस काल के सभी कवियों में भारतीय संस्कृति और उसके आदशों के प्रति गहरी आस्था है। भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति और सभ्यता, आचार और विचार भक्ति साहित्य के सुन्दर कलेवर में सुरक्षित हैं। इसमें सगुण-निर्गुण, भक्ति, योग, दार्शनिकता, आध्यात्मिकता और आदर्श जीवन के भव्य चित्र सन्निहित हैं। कुल मिलाकर भक्ति साहित्य तत्कालीन जनता का उन्नायक, प्रेरक एवं उद्धारकर्ता है। वह भारतीय संस्कृति का सशक्त उपदेष्टा है। राम, कृष्ण,अलख निरंजन और ओंकार का स्मारक है जो आज भी हिन्दू जन-जीवन के लिए प्रायः स्मरणीय है।

4.1.1.10  समन्वयकारी साहित्य:-

    भक्ति साहित्य साम्प्रदायिक संकीर्णताओं से ऊपर उठकर  समन्वय का संदेश देता है|  साहित्य में ऐसी भावनाओं का समावेश है जिनका इस्लाम धर्म से कोई विरोध नहीं है। रामचरितमानस में समन्वय का यह स्वरूप अत्यंत भव्य रूप में दिखाई देता है। तुलसीदासजी ने ज्ञान, भक्ति और कर्म का समन्वय करके तीर्थराज प्रयाग का निर्माण किया है।

चर्चा के मुख्य बिंदु 

भक्ति में ज्ञान का प्रमुख स्थान है |

भक्ति के बिना ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती |

Critical Overview / आलोचनात्मक अवलोकन

भक्तिकाल की रचनाओं में समन्वयात्मकता का विशेष स्थान दिया गया है । लोकमंगल की भावना भक्तिकालीन साहित्य की
प्रेरणा ऱ्ुुिैत है ।

Recap / पुनरावृत्ति

  • भक्ति साहित्य समन्वय की महान साहित्य है |
  • भक्तिकाल का साहित्य लोकमंगल पर आधारित है।
  • भक्तिकालीन साहित्य में युगनिर्माणकारिणी प्रेरणा दिखाई देती है।
  • भक्तिकालीन रचनायें आत्मतृप्ति के लिए लिखा जाता था।
  • लोक कल्याण ही भक्तिकालीन साहित्य का मूल उद्देश्य है।
  • भक्ति ज्ञान का प्रमुख साधन है |

Objective Questions / वस्तुनिष्ट प्रश्न

  1. भक्ति का प्रमुख साधन के रूप में किसे मानते हैं ?
  2. भक्तिकालीन साहित्य का मूल उद्देश्य क्या है ?
  3. भक्तिकाल का साहित्य किस पर आधारित है?
  4. इश्वर की प्राप्ति कैसे  होती है ?
  5. भक्ति काल के कवियों की रचनाओं में किस की प्रधानता है?
  6. भक्ति काल के सभी शाखाओं के कवियों ने  किस भावना को स्वीकार किया है?
  7. भक्तिकाल का साहित्य किस आदर्श द्वारा अनुप्राणित है ?
  8. भक्ति काल के कवियों की रचनाओं में किसकी प्रधानता है ?

Answer / उत्तर

  1. ज्ञान को भक्ति का प्रमुख साधन के रूप में मानते हैं |
  2. लोक कल्याण
  3. लोकमंगल पर आधारित है |
  4. भक्ति के बिना इश्वर की प्राप्ति नहीं होती |
  5. भक्ति काल के कवियों की रचनाओं में उनके व्यक्तिगत अनुभव की प्रधानता है।
  6. भक्ति भावना को |
  7. लोकमंगल के महान आदर्श द्वारा |
  8. व्यक्तिगत अनुभव की प्रधानता है।

Assignment / प्रदत्तकार्य

  • भक्तिकालीन हिंदी साहित्य की विशेषताओं पर पर्चा लिखिए |

Self Assesment / आत्म मूल्याकन

  • भक्तिकालीन रचनाओं में कवियों की व्यक्तिगत अनुभव की प्रधानता है, स्पष्ट कीजिये |
  • भक्ति साहित्य समन्वय का महान साहित्य है , अपना विचार व्यक्त कीजिये |
  • भक्तिकाल का साहित्य लोकमंगल पर आधारित है, इससे तात्पर्य क्या है |