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HISTORY OF HINDI LITERATURE
0/34
Environmental Studies
English Language and Linguistics
Introduction to Mass Communication
Private: BA Hindi
About Lesson

इकाई : 1

रीतिबद्ध परंपरा और उसके प्रमुख कवि

Learning Outcomes / अध्ययन परिणाम

  • रीतिबद्ध काव्य के वर्गीकरण समझता है ।
  • रीतिकालीन काव्य के परिप्रेक्ष्य में रीतिबद्ध काव्य का सामान्य परिचय प्राप्त करता है ।
  • रीतिबद्ध काव्य के स्वरूप समझता है ।
  • रीतिकालीन कविता में रीतिबद्ध काव्य के महत्व का परिचित प्राप्त करता है ।
  • रीतिबद्ध काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करता है ।
  • रीतिबद्ध प्रमुख कवियों और उनकी रचनाओं का परिचय प्राप्त करता है।

Prerequisites / पूर्वापेक्षा

    रीतिकाल की परिधि में काव्यरचना करनेवाले कवियों की व्यापक छानबीन करने के उपरांत आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीति ग्रंथकार कवि एवं अन्य कवि के रूप में  दो ही श्रेणियाँ निर्धारित की थीं । उन्होंने रीतिसिद्ध कवि जैसा कोई वर्गीकरण या विभाजन नहीं किया |    लेकिन कुछ आलोचक, विशेषकर विश्वनाथप्रसाद मिश्र, ने आचार्य कवियों की श्रेणी से  अलग विशेषताएँ रखनेवाले कुछ कवियों को  रीतिसिद्ध कवि के रूप में रेखांकित किया । इस तरह उनके द्वारा रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध रीतिमुक्त के रूप में किया गया ,जो आज सर्वमान्य सा हो गया है ।

    रीतिकाल में काव्यरचना का सर्वाधिक व्यापक प्रभाव रीतिबद्ध कवियों का है । इस काव्यधारा के कवियों की मूल प्रवृत्ति  शृंगारपरक  रचनाओं को विविध रूपों में प्रस्तुत करना है । रीतिनिरूपक लक्षणग्रंथों के माध्यम से काव्य के समस्त अंगों-उपांगों को स्पष्ट करना इनकी विशेषता है |  इन कवियों ने लक्षणों और उदाहरणों के माध्यम से काव्य की रचना करते हुए हिन्दी कविता  को संपन्न किया  | काव्यरचना की परंपरागत पद्धाति अथवा रीति का अनुसरण करने के कारण वे रीतिबद्ध कवि कहे जाते हैं । वे परंपरा से प्राप्त रीति अथवा पंथ को स्वीकार कर रचना करने वाला कवि मानते हैं | 

Key Themes / मुख्य प्रसंग

शास्त्रीय ढंग के अनुसार लक्षण, उदाहरण।
काव्यांगनिरूपण में लक्षणों का निर्माण।
काव्यरचना की परंपरागत पद्धाति।
काव्यांग का विस्तृत विवेचन।
तर्क द्वारा खंडन-मंडन।

Discussion / चर्चा

6.1.1 रीतिबद्धता और रीतिकाव्य

काव्यरचना के लिए काव्यशास्त्रीय परंपरा एवं पद्धति का पालन करते हुए लक्षण ग्रंथों की रचना करने वाले आचार्य कवि रीतिबद्ध कवि हैं। इस काव्यधारा के कवि काव्यरचना के नियमों में बँधकर रचना करते हैं । वे परंपरागत रीति से बँधी बँधाई परिपाटी पर काव्यरचना करने वाले कवि हैं, जिन्हें रीतिबद्ध काव्यधारा के अंतर्गत स्थान दिया गया है। इस धारा के आचार्य कवियों ने अलंकार निरूपण, रस निरूपण, नायिका भेद निरूपण आदि की सुदृढ़ और व्यापक परंपरा हिन्दी में स्थापित की। यह संस्कृत काव्यशास्त्रीय संप्रदायों में प्रचलित थी। यह हिन्दी में एक नवीन काव्यपरंपरा की सूचक थी। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के अनुसार ‘रीतिबद्ध रचना” लक्षणों और उदाहरणों से युक्त होती है ।

संस्कृत में तो पहले से ही रस, ध्वनि, अलंकार संप्रदायों की विवेचना करने वाले लक्षणग्रंथों में रस निरूपण, अलंकार निरूपण, तथा नायक- नायिका भेद आदि का विस्तृत और व्यापक विवेचन विद्यमान था। इससे प्रेरणा लेकर रीतिकाल के रीतिबद्ध कवियों ने हिन्दी में रचना करना आरंभ किया। रीतिबद्ध कवि संस्कृत आचार्यों से इस दृष्टि से भिन्न थे कि जहाँ संस्कृत के आचार्य काव्यांगनिरूपण में लक्षणों का निर्माण करते और उदाहरण किसी अन्य प्रसिद्ध कवि का उद्धृत करते हुए उन लक्षणों को स्पष्ट करते थे, हिन्दी के रीतिबद्ध कवि रीतिनिरूपण में लक्षणों का निर्माण करने के उपरांत उन्हें स्पष्ट करने के लिए स्वयं रचित काव्यमय उदाहरण भी देते थे। स्वयं के काव्य-उदाहरणों और लक्षणों को स्पष्ट करने के कारण वे संस्कृत आचार्यों से अलग हो जाते हैं। रीतिकाल के कवियों में आचार्य और कवि दोनों एक ही व्यक्ति के होने का परिणाम उत्कृष्ट काव्यरचना की दृष्टि से बहुत संतोषप्रद नहीं कहा जा सकता, “संस्कृत साहित्य में कवि और आचार्य दो भिन्न-भिन्न श्रेणियों के व्यक्ति रहे। हिन्दी काव्यक्षेत्र में यह भेद लुप्त सा हो गया। इस एकीकरण का प्रभाव अच्छा नहीं पड़ा। आचार्यत्व के लिए जिस सूक्ष्म विवेचन या पर्यालोचन शक्ति की अपेक्षा होती है, उसका विकास नहीं हुआ। कवि लोग एक ही दोहे में अपर्याप्त लक्षण देकर अपने कविकर्म में प्रवृत हो जाते थे। काव्यांग का विस्तृत विवेचन, तर्क द्वारा खंडन-मंडन,नए-नए सिद्धांतों का प्रतिपादन आदि कुछ भी न हुआ।” (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृ.181)

6.1.2 रीतिबद्ध काव्य

    रीतिकाल में रचित रीतिबद्ध काव्य का स्वरूप बहुत व्यापक है। परंपरागत काव्य रचना पद्धति के अनुकरण में श्रृंगारपरक रचनाओं का सर्जन इस काल की सामान्य प्रवृत्ति कही जा सकती है। राजाश्रय में रहते हुए दरबार की अपेक्षाओं और आकॉक्षाओं के अनुरूप चमत्कारपूर्ण कलात्मक काव्याभिव्यक्ति करना इस काल के कवियों के लिए अनिवार्य सा हो गया था। यही कारण है कि कविगण अपने ज्ञान और पांडित्य को काव्यरचना के माध्यम से प्रस्तुत करना अपना साहित्यिक धर्म समझने लगे थे। परिणामतः काव्यशास्त्रीय प्रभाव में काव्य रचना की एक नवीन और अनूठी प्रवृत्ति रीतिकाल में विकसित हो गई, जो संस्कृत काव्यशास्त्र की परंपरा में रचित कतिपय प्रमुख लक्षणग्रंथों के अनुकरण में भले ही सामने आई हो, पर हिन्दी के लिए वह निःसंदेह काव्यरचना की नूतन पद्धति कही जा सकती है।
रीतिकाल में काव्यरचना की इस नवीन प्रवृत्ति में काव्यांग विवेचन के अंतर्गत रीतिनिरूपण करने वाले लक्षणग्रंथों के माध्यम से व्यक्त इस प्रकार की रचनाओं को रीतिबद्ध काव्य की संज्ञा दी गई। काव्य के विविध अंगों- उपांगों का बहुत सूक्ष्म वर्णन इस काल की काव्यरचना की प्रमुख विशेषता है। रसविषयक वर्णनों, नायिकाभेद विषयक रचनाओं एवं अन्य श्रृंगार काव्यसर्जन में इस काल के कवियों का काव्य चास्र्त्व एवं काव्यकौशल बहुत उत्कृष्ट कहा जा सकता है।

6.1.3 रीतिबद्ध काव्य के प्रमुख कवि

रीतिबद्ध कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्न लिखित हैं :-

1.आचार्य केशवदास (1555 -1617)

    केशवदास रीतिकाल के अलंकारवादी कवि है। सम्यक प्रस्तावना लिखने वाले रीतिबद्ध काव्यरचना के प्रेरक आचार्य कवि हैं आचार्य केशवदास। ओरछा नरेश इन्द्रजीत सिंह इन्हें गुस्र् मानते थे। आपका प्रमुख रीति ग्रंथ है “रसिकप्रिया”। अधिकांश विद्वान “रसिकप्रिया” को हिन्दी में रसविवेचन करने वाला प्रथम लक्षणग्रंथ के रूप में मानते हैं। इसमें 9 रसों का वर्णन है । लेकिन इसका मूल भाव श्रृंगार है। “कविप्रिया”, “रतन बावनी”, “वीर चरित्र”, “जहाँगीर जसचंद्रिका”, “रामचंद्रिका”, “विज्ञानगीता”, “नखशिख”, छाँद माला आदि अन्य प्रमुख ग्रंथ हैं ।

2.चिन्तामणि (1609-1685 के मध्य विद्यमान)

    चिन्तामणी शाहजी भोंसला, शाहजहाँं औरदाराशिकोह के आश्रय में रहते थे। चिन्तामणी ने रीतिनिरूपण को अत्यंत निष्ठा के साथ ग्रहण किया। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की दृष्टि में चिन्तामणी रीतिकाल के प्रवर्तक आचार्य कवि हैं, केशवदास से भिन्न आदर्श को लेकर चलने वाले कवि है और रीतिकाल की अविच्छिन्न काव्य परंपरा का प्रवर्तक भी हैं। “रसविलास”, “छंदविचार पिगिल”, “श्रृंगारमंजरी”, “कविकुलकल्पतस्र्”, “कृष्णचरित्र काव्यविवेक”, “काव्यप्रकाश”, “रामायण”, “रामाश्वमेध”, “गीत गोविंद”, “बारह खड़ी”, “चौंतीसा”।

3.जसवंतसिंह (सन्‌ 1627-1729)

“रामायण”, “रामाश्वमेध”, “गीत गोविंद”, “बारह खड़ी”, “चौंतीसा”। ये रीतिकाल के अलंकार निरूपक आचार्य कवियों में प्रमुख कवि हैं। आप मारवाड़ नरेश महाराज गजसिंह द्विदीय के पुत्र थे। पिता के मृत्यु की बाद बारह वर्ष की आयु में राज्य-भार संभालना पड़ा। शाहजहाँ और औरंगजेब के शासन काल में मुगल दरबार के राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रहे । अनेक कवि और पंडित इनके आश्रय में रहते थे। “भाषाभूषण” इनका प्रमुख अलंकार विषयक ग्रंथ है। “अपरोक्ष सिद्धांत”, “सिद्धांत बोध”, “अनुभवप्रकाश”, “आनंदविलास”, “सिद्धांतसार” आदि प्रमुख रचनाएँ  हैं। संस्कृत के “प्रबोधचन्द्रोदय” नाटक का ब्रजभाषा में पद्यानुवाद भी इन्होंने किया।

4.मतिराम (1608)

    मतिराम का जन्म उत्तरप्रदेश के जिला पतेहपुर के बनपुर नामक स्थान में हुआ । आप चिन्तामणि के भाई हैं। श्रृंगार रस को प्रमुखता देने वाला कवि हैं मतिराम। जहांगीर, कुमायू- नरेश ज्ञानचंद, बूंदी नरेश राव भाव सिंह हाड़ा आदि अनेक राजाओं के आश्रय में रहे । इनके द्वारा रचित आठ ग्रन्थ कहे जाते हैं – “रसराज”, “ललितललाम”, “साहित्यससार”, “मतिराम सतसई”, “लक्षण श्रृंगार”, “फूल मंजरी”, “अलंकार पंचशिका” और “वृत्त कौमुदी”।

5.भूषण (सन्‌ 1613-1715)

    रीतिबद्ध कवियों में वीर रस के एकमात्र प्रमुख लोकप्रिय कवि हैं भूषण। अनुमान है कि चित्रकूट के राजा स्र्द्रसाह सोलंकी ने इन्हें भूषण की उपाधि से सम्मानित किया। इनका वास्तविक नाम में आज भी मत-भेद है। “शिवराज भूषण”, “शिवबावनी”, “छत्रसाल दशक”, “भूषण उल्लास”, “दृषण उल्लास”, “भूषण हज़ारा” आदि प्रमुख ग्रंथ हैं।

6. देव (सन् 1673)
रीतिकाल में बिहारी के उपरांत सर्वाधिक लोकप्रिय एवं गंभीर-स्वाभाविक कवि हैं देव । आलोचकों के लिए बिहारी को टक्कर देने वाले कवि हैं देव । बिहारी -देव; देव- बिहारी का साहित्यिक विवाद, जो हिन्दी साहित्य की रोचक साहित्यिक कलह है और हिन्दी की तुलनात्मक आलोचना को गति देनेवाली प्रमुख घटना है। कवि देव द्वारा रचित 72 ग्रंथ बताए जाते हैं । इनमें से कुछ हैं – “भाव विलास”, “रस विलास”, “भवानी विलास”, “कुशल बिलास”,” जाति विलास”, “वृक्ष विलास”, “पावस विलास”, “राधिका विलास”, “सुजान विनोद”, “नीति शतक”, “प्रेम तरंग”, “रसानंद लहरी”; “राय रत्नाकर”; “प्रेम चंद्रिका”, “प्रेम दीपिका”, “प्रेम दर्शन”, “अष्टयाम”, “काव्यरसायन”, “देव चरित्र”, “देवमाया प्रपंच”, “नखाशिख” आदि।
7. कुलपति मिश्र (रचनाकाल सन् 1660-1700)
आप जयपुर के महाराज जयसिंह के पुत्र महाराज रामसिंह के आश्रय में रहते थे । पिंगलाचार्य के रूप में ख्यात रचनाकार कुलपति मिश्र, संस्कृत काव्यशास्त्र के विद्वान आख्याता के रूप में भी जाने जाते हैं । मौलिक काव्यरचना प्रतिभा से संपन्न आचार्य कवि भी हैं आप । आपके द्वारा लिखित 5 प्रमुख रचनाएँ हैं – “रस रहस्य”, “संग्राम सार”, “दुर्गा भक्ति चंद्रिका”, “मुक्ती तरंगिणी”, “नखशिख” आदि ।
8. भिखारीदास
रीतिबद्ध कवियों में प्रमुख। काव्यशास्त्रीय ज्ञान एवं पांडित्य के साथ मौलिक काव्यप्रतिभा का संतुलन भिखारीदास की रचानाओं में देख सकते हैं । इनके 7 ग्रंथ उपलब्ध है – “विष्णुपुराण भाषा”, “शतरंज शतिका”, “रस सारांश”, “छंदोर्णव पिंगल”, “श्रृंगार निर्णय”, “काव्य निर्णय”, “शब्दनाम कोश” आदि ।
9. पद्माकर (1753-1833)
नव रसों का सफल निरूपण करने वाले आचार्यों में प्रमुख हैं पद्माकर। आप अनेक राजाओं के आश्रय में रहते थे। इनमें प्रमुख हैं – सागर नरेश रघुनाथ राव अप्पा, जयपुर नरेश प्रताप सिंह, उदयपुर नरेश महाराज भीम सिंह आदि। इनके द्वारा रचित 7 मौलिक ग्रंथ मिलते हैं। “पद्माभरण”, “जगद्विनोद”, “हिम्मत बहादुर विस्र्दावली”, “प्रतापसिंह विस्र्दावली”, “प्रबोध पचासा”, “कलि पच्चीसी”, “गंगा लहरी” आदि ।

अन्य रचनाकार और उनकी रचनाएँं

  •  ग्वाल कवि – इनके सोलह ग्रन्थ कहे जाते
    हैं- “साहित्यानंद”, “कविदर्पण”, “सिकानंद”,
    “नेहनिर्वाह”, “हम्मीर हठ”, विजय विनोद”, “भक्त
    भावन”, “गुस्र् पचासा” आदि प्रमुख ग्रंथ हैं ।
  •  तोष – “सुधानिधि”, “नखशिख”, “विनय
    शतक”।
  •  याखूब खां – “रस भूषण” ।
  •  बेनी “प्रवीन”- “नवरस तरंग”।
  • रसलीन – “रसप्रवोध”, “अंग दर्पण” ।
  •  सुखदेवमिश्र – वृत्तविचार; छंदविचार
  •  रसिकगोविंद – इनके 10 ग्रंथ माने जाते हैं ।
    “समय प्रबंध” , “रामायण सूचनिका” आदि प्रमुख है।
  • ढश्रीपति मिश्र – “काव्य सरोज”; “रस सागर”,
    “विक्रम विलास” ।
  •  सुरतिमिश्र – “अलंकारमाला”, “ससरस”,
    “नखशिख”, “भक्तिविनोद”, “श्रृंगाररसा”।

Critical Overview / आलोचनात्मक अवलोकन

    रीतिकाल की कवियों नें काव्यरचना की जो पद्धति स्वीकार की उसके अंतर्गत रीतिबद्धता प्रमुख प्रवृत्ति कही जा सकती है। रीतिबद्ध कवियों की प्रमुख प्रवृत्ति श्रृंगार परक रचनाओं को विविध रूपों में प्रस्तुत करना है । रीतिबद्ध कवि रीतिनिरूपक लक्षणग्रंथों के माध्यम से काव्य के समस्त अंगों- उपांगों को स्पष्ट किया । उसके लिए लक्षणों और उदाहरणों के माध्यम से काव्यमय अभिव्यक्ति भी की । इस प्रकार हिन्दी कविता का जैसे प्रसार एवं विकास इन कवियों ने किया है, वह
उल्लेखनीय है।
काव्यरचना के इस व्यापक प्रयास को रीतिबद्ध काव्य के रूप में स्वीकार किया गया है और ऐसी काव्यरचना करने वाले कवियों को रीतिबद्ध कबि के रूप में जाना जाता है।

Recap / पुनरावृत्ति

  • रीतिकाल में रचित रीतिबद्ध काव्य का स्वरूप बहुत व्यापक है।
  • इस काव्यधारा के कवि काव्यरचना के नियमों में बँधकर रचना करते थे ।
  • इस धारा के कवियों ने अलंकार निरूपण, रसनिरूपण, नायिका भेद निरूपण आदि की सुदृढ़ और व्यापक परंपरा हिन्दी में स्थापित की।
  • रीतिकाल की सम्यक्‌ प्रस्तावना लिखने वाले रीतिबद्ध आचार्य कवि है आचार्य केशवदास।
  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की दृष्टि में रीतिकाल के प्रवर्तक आचार्य कवि है   चिन्तामणि ।

Objective Questions / वस्तुनिष्ट प्रश्न

  1. रीतिबद्ध कवियों की मुख्य प्रवृत्ति क्या- क्या है ?
  2. रीतिकाल की सम्यक्‌ प्रस्तावना लिखने वाले रीतिबद्ध आचार्य कवि कौन है ?
  3. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की दृष्टि में रीतिकाल के प्रवर्तक आचार्य कवि कौन है ?
  4. आचार्य केशवदास का जीवन काल कब से कब तक है ?
  5. आचार्य चिन्तामणि का जीवन काल कब से कब तक है ?
  6. आचार्य देव का जीवन काल कब से कब तक है ?
  7. . मंडन की तीन रचनाओं का नाम लिखिए ? रसरत्नावली; रसाविलास, नखसिख,; काव्यरत्त
  8. भिखारीदासकी तीन रचनाओं का नाम लिखिए ?
  9. कुलपति मिश्र की तीन रचनाओं का नाम लिखिए ?
  10. देव की तीन रचनाओं का नाम लिखिए ?

Answer / उत्तर

  1. अलंकार निरूपण, रसनिरूपण और नायिका भेद निरूपण
  2. केशवदास ।
  3. चिंतामणी
  4. आचार्य केशवदास (1555 -1617)
  5. देव (सन्‌ 1637-1768)
  6. कुलपति मिश्र ( सन्‌ 1660-1700)
  7. रसरत्नावली; रसाविलास, नखसिख |
  8. ‘विष्णुएुराण भाषा’ , ‘नामप्रकाश’, ‘शतरंज शतिका’ |
  9. ‘रस रहस्य’, ‘संग्राम सार’, ‘दुगभिक्ति चंद्रिका’, ‘शक्ति तरंगिणी’ |
  10. ‘रसानंद लहरी’, प्रेस दीपिका’, ‘प्रेम दर्शन’

Assignment / प्रदत्तकार्य

  1. केशवदास की रचनाओं की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ?
  2. देव की रचनाओं की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ?

Self Assesment / आत्म मूल्याकन

  • आपके राय में प्रमुख रीतिबद्ध कवि कौन है ?
  • रीतिबद्ध कवि काव्यरचना की परंपरागत पद्धाति अपनाते हैं । सिद्ध कीजिए ?