इकाई : 2
मध्यकाल के वर्गीकरण और विभिन्न नामकरण
Learning Outcomes / अध्ययन परिणाम
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Prerequisites / पूर्वापेक्षा
भक्ति काल हिन्दी साहित्य का श्रेष्ठ युग है। भक्ति काल में महाप्रभु वल्लभाचार्य द्वारा पुष्टि-मार्ग की स्थापना की। |
Key Themes / मुख्य प्रसंग
आचार्य रामचंद्र शुक्लने इस समय को ‘भक्ति काल’ नाम दिया |
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने‘लोक जागरण’ कहा|
भक्ति काल को जॉर्ज ग्रियर्सनने ‘स्वर्णकाल’ नाम दिया|
भक्ति काल को रजत जोशी ने‘स्वर्णयुग’ नाम दिया |
सगुण एवं निर्गुण परमात्मा पर विश्वास पैदा करने का परिश्रम ।
वल्लभाचार्य द्वारा पुष्टि-मार्ग की स्थापना करना और विष्णु के कृष्णावतार की उपासना करने का प्रचार|
Discussion / चर्चा
3.2.1 भक्ति काल के विभिन्न नामकरण
हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्ति काल का महत्वपूर्ण स्थान है। इस युग को ‘पूर्व मध्यकाल’ भी कहा जाता है। इसकी समयावधि 1375 वि.सं से 1700 वि.सं तक की मानी जाती है। यह हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ युग है| इसे जॉर्ज ग्रियर्सन ने स्वर्णकाल, रजत जोशी ने स्वर्णयुग, आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भक्ति काल एवं हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लोक जागरण कहा। सम्पूर्ण साहित्य के श्रेष्ठ कवि और उत्तम रचनाएं इसी समय में प्राप्त होती हैं। दक्षिण में आलवार संत नाम से कई प्रख्यात भक्त हुए हैं। इनमें से कई तथाकथित नीची जातियों के भी थे। वे बहुत पढे-लिखे नहीं थे, परंतु अनुभवी थे। आलवारों के पश्चात दक्षिण में आचार्यों की एक परंपरा चली जिसमें रामानुजाचार्य प्रमुख थे। रामानुजाचार्य की परंपरा में रामानंद हुए। उनका व्यक्तित्व असाधारण था। वे उस समय के सबसे बड़े आचार्य थे। उन्होंने भक्ति के क्षेत्र में ऊंच-नीच का भेद जोड़ दिया। सभी जातियों के अधिकारी व्यक्तियों को आपना शिष्य बनाया।
रामानंद ने विष्णु के अवतार राम की उपासना पर बल दिया। रामानंद ने और उनकी शिष्य-मंडली ने दक्षिण की भक्तिगंगा का उत्तर में प्रवाहित किया। समस्त उत्तर-भारत इस पुण्य-प्रवाह में बहने लगा। भारत भर में उस समय पहुंचे हुए संत और महात्मा भक्तों का आविर्भाव हुआ। महाप्रभु वल्लभाचार्य ने पुष्टि-मार्ग की स्थापना की और विष्णु के कृष्णावतार की उपासना करने का प्रचार किया। उनके द्वारा जिस लीला-गान का उपदेश हुआ उसने देशभर को प्रभावित किया। अष्टछाप के सुप्रसिध्द कवियों ने उनके उपदेशों को मधुर कविता में प्रतिबिंबित किया। इसके उपरांत माध्व तथा निंबार्क संप्रदायों का भी जन-समाज पर प्रभाव पड़ा है। साधना-क्षेत्र में दो अन्य संप्रदाय भी उस समय विद्यमान थे। नाथों के योग-मार्ग से प्रभावित संत संप्रदाय चला जिसमें प्रमुख व्यक्तित्व संत कबीरदास का है। मुसलमान कवियों का सूफीवाद हिंदुओं के विशिष्टाद्वैतवाद से बहुत भिन्न नहीं है। कुछ भावुक मुसलमान कवियों द्वारा सूफीवाद से रंगी हुई उत्तम रचनाएं लिखी गईं।
भक्ति-युग की दो प्रमुख काव्य-धाराएं मिलती हैं :सगुण भक्ति और निर्गुण भक्ति| सगुण भक्ति के दो धाराएँ है –राम भक्ति शाखा और कृष्ण भक्ति शाखा| निर्गुण भक्ति के दो रूप हैं – ज्ञानाश्रयी शाखा और प्रेमाश्रयी शाखा |
चर्चा के मुख्य बिंदु
भक्ति काल के वर्गीकरण पर विचार करना|
भक्ति काल के विविध नामकरण पर विचार करना |
Critical Overview / आलोचनात्मक अवलोकन
भक्ति काल को विभिन्न आचार्यों ने विभिन्न नामों से अभिहित किया गया । आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा दिया गया “भक्ति काल” नाम बाद में ज़्यादातर प्रयुक्त होने लगा ।
Recap / पुनरावृत्ति
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Objective Questions / वस्तुनिष्ट प्रश्न
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Answer to Objective type questions/ उत्तर
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Assignment / प्रदत्तकार्य
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Self Assesment / आत्म मूल्याकन
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