Course Content
HISTORY OF HINDI LITERATURE
0/34
Environmental Studies
English Language and Linguistics
Introduction to Mass Communication
Private: BA Hindi
About Lesson

इकाई : 2

मध्यकाल के वर्गीकरण और विभिन्न नामकरण

Learning Outcomes / अध्ययन परिणाम 

  • भक्ति काल के वर्गीकरण से अवगत होता है |
  • विभिन्न आचार्यों के द्वारा दिए गए नामकरण से परिचय प्राप्त करता है |
  • निर्गुण भक्ति काव्यधरा और उसके कवियों के बारे में परिचय प्राप्त करता है |
  • सगुण भक्ति काव्यधरा और उसके कवियों के बारे में परिचय प्राप्त करता है |

Prerequisites / पूर्वापेक्षा

भक्ति काल हिन्दी साहित्य का श्रेष्ठ युग है। भक्ति काल में महाप्रभु वल्लभाचार्य द्वारा पुष्टि-मार्ग की स्थापना की।
इसके अलावा मध्व तथा निंबार्क संप्रदायों की स्थापना भी हुई।
भक्ति काल की दो प्रमुख काव्यधाराएँ हैं, सगुण भक्ति और निर्गुण भक्ति। सगुण भक्ति की दो धाराएँ हैं – राम भक्ति
शाखा और कृष्ण भक्ति शाखा। निर्गुण भक्ति के दो रूप हैं – ज्ञानाश्रयी शाखा और प्रेमाश्रयी शाखा ।
भक्ति काल के विभिन्न नामकरण हैं, पूर्व मध्यकाल, स्वर्णकाल, स्वर्णयुग और लोक जागरण काल आदि।

Key Themes / मुख्य प्रसंग

आचार्य रामचंद्र शुक्लने इस समय को ‘भक्ति काल’ नाम दिया |

हजारी प्रसाद द्विवेदी ने‘लोक जागरण’ कहा|

भक्ति काल को जॉर्ज ग्रियर्सनने ‘स्वर्णकाल’ नाम दिया|

भक्ति काल को रजत जोशी ने‘स्वर्णयुग’ नाम दिया |

सगुण एवं निर्गुण परमात्मा पर विश्वास पैदा करने का परिश्रम ।

वल्लभाचार्य  द्वारा पुष्टि-मार्ग की स्थापना करना और  विष्णु के कृष्णावतार की उपासना करने का प्रचार|

Discussion / चर्चा

3.2.1 भक्ति काल के विभिन्न नामकरण

हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्ति काल का महत्वपूर्ण स्थान है।  इस युग को ‘पूर्व मध्यकाल’ भी कहा जाता है। इसकी समयावधि 1375 वि.सं से 1700 वि.सं तक की मानी जाती है। यह हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ युग है| इसे जॉर्ज ग्रियर्सन ने स्वर्णकाल, रजत जोशी ने स्वर्णयुग, आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भक्ति काल एवं हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लोक जागरण कहा। सम्पूर्ण साहित्य के श्रेष्ठ कवि और उत्तम रचनाएं इसी समय में प्राप्त होती हैं।  दक्षिण में आलवार संत नाम से कई प्रख्यात भक्त हुए हैं। इनमें से कई तथाकथित नीची जातियों के भी थे। वे बहुत पढे-लिखे नहीं थे, परंतु अनुभवी थे। आलवारों के पश्चात दक्षिण में आचार्यों की एक परंपरा चली जिसमें रामानुजाचार्य प्रमुख थे। रामानुजाचार्य की परंपरा में रामानंद हुए। उनका व्यक्तित्व असाधारण था। वे उस समय के सबसे बड़े आचार्य थे। उन्होंने भक्ति के क्षेत्र में ऊंच-नीच का भेद जोड़ दिया। सभी जातियों के अधिकारी व्यक्तियों को आपना शिष्य बनाया।

रामानंद ने विष्णु के अवतार राम की उपासना पर बल दिया। रामानंद ने और उनकी शिष्य-मंडली ने दक्षिण की भक्तिगंगा का उत्तर में प्रवाहित किया। समस्त उत्तर-भारत इस पुण्य-प्रवाह में बहने लगा। भारत भर में उस समय पहुंचे हुए संत और महात्मा भक्तों का आविर्भाव हुआ।  महाप्रभु वल्लभाचार्य ने पुष्टि-मार्ग की स्थापना की और विष्णु के कृष्णावतार की उपासना करने का प्रचार किया। उनके द्वारा जिस लीला-गान का उपदेश हुआ उसने देशभर को प्रभावित किया। अष्टछाप के सुप्रसिध्द कवियों ने उनके उपदेशों को मधुर कविता में प्रतिबिंबित किया।  इसके उपरांत माध्व तथा निंबार्क संप्रदायों का भी जन-समाज पर प्रभाव पड़ा है। साधना-क्षेत्र में दो अन्य संप्रदाय भी उस समय विद्यमान थे। नाथों के योग-मार्ग से प्रभावित संत संप्रदाय चला जिसमें प्रमुख व्यक्तित्व संत कबीरदास का है। मुसलमान कवियों का सूफीवाद हिंदुओं के विशिष्टाद्वैतवाद से बहुत भिन्न नहीं है। कुछ भावुक मुसलमान कवियों द्वारा सूफीवाद से रंगी हुई उत्तम रचनाएं लिखी गईं।

भक्ति-युग की दो प्रमुख काव्य-धाराएं मिलती हैं :सगुण भक्ति और निर्गुण भक्ति|  सगुण भक्ति के दो धाराएँ है –राम भक्ति  शाखा और कृष्ण भक्ति  शाखा| निर्गुण भक्ति के दो रूप हैं – ज्ञानाश्रयी शाखा और प्रेमाश्रयी शाखा |

चर्चा के मुख्य बिंदु

भक्ति काल के वर्गीकरण पर विचार करना|

भक्ति काल के विविध नामकरण पर विचार करना |

Critical Overview / आलोचनात्मक अवलोकन

भक्ति काल को विभिन्न आचार्यों ने विभिन्न नामों से अभिहित किया गया । आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा दिया गया “भक्ति काल” नाम बाद में ज़्यादातर प्रयुक्त होने लगा ।

Recap / पुनरावृत्ति 

  • भक्ति का स्रोत दक्षिण से आने पर भी उत्तर भारत की नई परिस्थितियों में उसने एक नया रूप भी ग्रहण किया।
  • मुसलमानों के इस देश में बस जाने पर एक ऐसे भक्तिमार्ग की आवश्यकता थी जो हिंदू और मुसलमान दोनों को ग्राह्य हो।
  • महाराष्ट्र के संत नामदेव ने 14 वीं शताब्दी में इसी प्रकार के भक्तिमत का सामान्य जनता में प्रचार किया जिसमें भगवान्‌ के सगुण और निर्गुण दोनों रूप गृहीत थे।
  • कबीर के संतमत के ये पूर्वपुरुष हैं।
  • सूफी कवियों ने हिंदुओं की लोककथाओं का आधार लेकर ईश्वर के प्रेममय रूप का प्रचार किया।
  • विभिन्न मतों का आधार लेकर हिंदी में निर्गुण और सगुण के नाम से भक्तिकाव्य की दो शाखाएँ साथ साथ चलीं।
  • निर्गुणमत के दो उपविभाग हुए – ज्ञानाश्रयी और प्रेमाश्रयी। पहले के प्रतिनिधि कबीर और दूसरे के जायसी हैं।
  • सगुणमत भी दो उपधाराओं में प्रवाहित हुआ – रामभक्ति और कृष्णभक्ति। पहले के प्रतिनिधि तुलसी हैं और दूसरे के सूरदास।
  • भक्तिकाव्य की इन विभिन्न प्रणलियों की अपनी अलग अलग विशेषताएँ हैं पर कुछ आधारभूत बातों का सन्निवेश सब में है।
  • प्रेम की सामान्य भूमिका सभी ने स्वीकार की।
  • भक्तिभाव के स्तर पर मनुष्यमात्र की समानता सबको मान्य है।
  • प्रेम और करुणा से युक्त अवतार की कल्पना तो सगुण भक्तों का आधार ही है पर निर्गुणोपासक कबीर भी अपने राम को प्रिय, पिता और स्वामी आदि के रूप में स्मरण करते हैं।
  • ज्ञान की तुलना में सभी भक्तों ने भक्तिभाव को गौरव दिया है।
  • सभी भक्त कवियों ने लोकभाषा का माध्यम स्वीकार किया है।
  • आज की दृष्टि से इस संपूर्ण भक्तिकाव्य का महत्व उसक धार्मिकता से अधिक लोकजीवनगत मानवीय अनुभूतियों और भावों के कारण है।

Objective Questions / वस्तुनिष्ट प्रश्न

  1. भक्ति काल’ नाम किस ने दिया था ?
  2. हजारी प्रसाद द्विवेदी नेभक्ति काल को क्या नाम दिया ?
  3. भक्ति काल को जॉर्ज ग्रियर्सनने क्या नाम दिया ?
  4. भक्ति काल को रजत जोशी कौन-सा नाम दिया ?
  5. भक्तिकाल के सब-से बड़ी विशेषता क्या है ?
  6. पुष्टि-मार्ग की स्थापना किसने की ?
  7. किन लोगों ने हिंदुओं की लोककथाओं का आधार लेकर ईश्वर के प्रेममय रूप का प्रचार किया।
  8. सगुण भक्तों का आधार क्या  है ?

Answer to Objective type questions/ उत्तर

  1. आचार्य रामचंद्र शुक्लने इस समय को ‘भक्ति काल’ नाम दिया|
  2. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने‘लोक जागरण कहा था|
  3. भक्ति काल को जॉर्ज ग्रियर्सनने ‘स्वर्णकाल’ नाम दिया |
  4. भक्ति काल को रजत जोशी ने‘स्वर्णयुग’ नाम दिया |
  5. सगुण एवं निर्गुण परमात्मा पर विश्वास पैदा करने का परिश्रम ।
  6. वल्लभाचार्य द्वारा पुष्टि-मार्ग की स्थापना करना ।
  7. सूफी कवियों ने |
  8. प्रेम और करुणा से युक्त अवतार की कल्पना |

Assignment / प्रदत्तकार्य

  • हिन्दी साहित्य के भक्ति काल विभाजन पर टिप्पणी लिखिए ।

Self Assesment / आत्म मूल्याकन

  1. हिन्दी में भक्ति काल को सुवर्ण काल कहने के कारण ।
  2. सगुण एवं निर्गुण भक्ति द्वारा परमात्मा पर विश्वास पैदा करने का परिश्रम ।