इकाई : 2
रीतिकाल के वर्गीकरण और विभिन्न नामकरण
Learning Outcomes / अध्ययन परिणाम
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Prerequisites / पूर्वापेक्षा
रीतिकाल की मुख्य प्रवृत्ति रीति निरूपण और श्रृंगारिकता है | इसलिए शुक्ल जैसे आचार्य ने इसे ‘रीतिकाल’ नाम दिया है और कुछ विद्वानों ने ‘श्रृंगारकाल’ | इसके अलावा अलंकृतकाल , कलाकाल जैसे नामकरण भी देख सकते है| रीतिकाल को ‘रीतिकाल’ नाम देने का श्रेय आचार्य रामचंद्र शुक्ल को है । अधिकांश विद्वान इस नाम को स्वीकार किये हैं । रीतिकालीन साहित्यिक प्रवृत्तियों के अधार दिये गए विभिन्न नामकरण पर यहां हम चर्चा करेंगे | |
Key Themes / मुख्य प्रसंग
रीतिकाल का साहित्य “समृद्ध साहित्य” है ।
आश्रयदाताओं की प्रशंसा ।
व्यापक श्रुगारिकता ।
कम नैतिकता।
रीति निरूपण की प्रवृत्ति
“विशिष्ट पद रचना”रीति
Discussion / चर्चा
5.2.1 ‘रीति’ शब्द का अर्थ
भारत में रीति संप्रदाय के स्थापक आचार्य वामन है । लेकिन ‘रीति’ शब्द का ‘रीति संप्रदाय’ से कोई सम्बन्ध नहीं है ।
आचार्य वामन ने ‘विशिष्टा पद रचना’ पद्धति को रीति: कहा है । विभिन्न आचार्यों ने रीति शब्द को ‘विशिष्ट पद रचना’ ही कहा हैं ।
लेकिन संस्कृत की तरह हिन्दी में रीति का अर्थ विशिष्ट पदरचना नहीं है । रीतिकवि अथवा रीतिग्रंथ में प्रयुक्त रीति शब्द का अर्थ काव्य शास्त्र से समझना चाहिए। संक्षेप में सभी काव्य सिद्धांतों के आधार पर काव्यांगों के लक्षण सहित या उनके आधार पर लिखे गए ग्रंथों को रीतिग्रंथ कहा जाता है। दूसरे शब्दों में काव्य की रीति को काव्य की आत्मा समझकर उसके अनुसार रचने वाले ग्रंथ को रीति ग्रंथ कहते हैं ।
संवत 1700 से संवत 1900 तक रीति पद्धति पर विशेष जोर रहा । इस काल के प्रत्येक कवि ने रीति के साँचे में ढलकर -रचना लिखी ।
5.2.2 विभिन्न नामकरण
रीतिकाल
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल इस काल को ‘रीतिकाल’ नाम दिया | इस काल की प्रवृत्तियां , मानव-मनोविज्ञान और रीति ग्रंथों की प्रचार के कारण आचार्य शुक्ल ने यह नाम दिया ।
इस काल को ‘रीतिकाल’ कहने वाला एक और विद्वान है ‘बाबू श्यामसुंदर दास’ | बाबू श्यामसुंदर दास ‘हिन्दी साहित्य के उत्तर मध्यकाल’ नामक अपने ग्रंथ में यह व्यक्त किया है | बाबू श्यामसुंदर दास के अनुसार इस काल में शृंगार रस की प्रवृत्ति ज़्यादा थी | इसके अलावा उन्होंने रीतिमुक्त कवियों का महत्त्व स्वीकार करते हुए इसका नामकरण रीतिकाल ही उचित समझा।
रीतिकाव्य
ग्रियर्सन ने अपने इतिहास ग्रंथ ‘ मॉर्डन वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान ‘ में इस काल को ‘रीतिकाव्य’ कहा है ।
अलंकृतकाल
मिश्रबंधुओं ने इस काल को अलंकृतकाल कहा । उन्होंने ‘मिश्रबंधु विनोद’ में यह स्पष्ट किया है | इस काल अधिकांश आचार्य लोग स्वयं कविता लिखते थे और कविता करने की रीति भी सिखलाते थे । लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि इस काल में सिर्फ अलंकार की प्रवृत्ति ही नहीं बल्कि अलंकारों की प्रधानता है अथवा अलंकरण पर अधिक बल दिया गया है।
श्रृंगारकाल
पं विश्वनाथप्रसाद मिश्र ने इस काल को श्रृंगारकाल नाम दिया । उनके अनुसार आलम,घनानंद,बोधा और ठाकुर जैसे कविगण शृंगार या प्रेम के उन्मुक्त प्रवर्तक थे | इस काल की मुख्य प्रवृत्ति रस और श्रृंगार की है | इस लिए इस काल को श्रृंगारकाल कहा जा सकता है।
कलाकाल
डॅा. श्यामशंकर शुक्ल जैसे आलोचक इस काल को कलाकाल कहते हैं । कला पक्ष की प्रधानता और महत्व को देखकर इसको यह नाम रखा |
5.2.3 रीतिकाल का वर्गीकरण
रीतिकाल का मुख्य: तीन धाराएँ हैं । रीतिमुक्त, रीतिसिद्ध और रीतिबद्ध ।शास्त्रीय ढंग के अनुसार लक्षण, उदाहरण आदि से युक्त काव्य रचना को रीति बद्ध काव्य कहते है ।
काव्य रीति के बन्धन से पूर्णतः मुक्त होकर रचना किये गये कवियों को रीति मुक्त काव्य कहते है।
रीति के भली-भाँति जानकार होकर भी रीति ग्रंथ लिखे बिना उस जानकारी का पूरा-पूरा उपयोग अपने काव्य ग्रन्थों में किये गये कवि को रीति सिद्ध कवि कहते हैं ।
Critical Overview / आलोचनात्मक अवलोकन
इन सभी नामकरणों की विवेचना के पश्चात यही कहा जा सकता है कि रीतिकालीन सभी कवियों ने रीति-परम्परा का पूर्ण निर्वाह किया । अत: श्रृंगार रस की प्रधानता होने पर भी इसे ‘श्रृंगारकाल’ नहीं कहा जा सकता है और उसी प्रकार ‘अलंकृत काल’ भी | ‘कलाकाल ‘कहना तो बिल्कुल अनुचित होगा, क्योंकि साहित्य में भावपक्ष के बिना कला का कोई महत्त्व नहीं । अतः रीतिकाल कहना ही तर्कसंगत प्रतीत होता है, क्योंकि रस, अलंकार आदि रीति पर आश्रित होकर आए हैं।
विषयवस्तु की दृष्टि से देखे तो इस काल को ‘रीतिकाल’ नाम ही अधिक सराहनीय है । क्योंकि इस काल में रीतिनिरूपण और श्रृगारिकता की प्रवृत्ति ही अधिक देख सकते है । फिर भी रीति की प्रवृत्ति ही अधिकांश रूप में देख सकते है । इस समय के अधिकांश कविगण काव्यांग निरूपण पर बल दिया था ।
Recap / पुनरावृत्ति
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Objective Questions / वस्तुनिष्ट प्रश्न
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Answer / उत्तर
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Assignment / प्रदत्तकार्य
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Self Assesment / आत्म मूल्याकन
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