इकाई : 2
रीतिसिद्ध परंपरा और उसके प्रमुख कवि
Learning Outcomes / अध्ययन परिणाम
|
Prerequisites / पूर्वापेक्षा
रीति काल में मुख्य रूप में तीन प्रकार की रचना हुई है। रीति बद्ध कवि, रीति मुक्त कवि , रीति सिद्ध कवि। इनमें प्रमुख है रीतिसिद्ध धारा।
|
Key Themes / मुख्य प्रसंग
साहित्यिक ब्रजभाषा
संयोग और वियोग श्रुगार
पूर्वी हिन्दी, बुन्देलखड़ी, फारसी शब्द का प्रयोग
दोहा छन्द की प्रमुखता
अतिशयोक्ति, अन्योक्ति, व्यतिरेख, संदेह,- अलंकार
नीति, भक्ति, गणित, आयुर्वेद संबंधी दोहा
सूक्तिकार वृंद
Discussion / चर्चा
6.2.1 प्रमुख रीति सिद्ध कवि
6.2.1 .1 बिहारी लाल
कविवर बिहारी लाल का जन्म सन् 1603 में मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के वसुआ, गोविन्दपुर नामक गाँव में हुआ है ।
रचनाएँ
बिहारी की एकमात्र रचना “बिहारी सतसई” है, जिसमें 719 दोहे संकलित हैं। “बिहारी सतसई” में विविध विषयों
से संबंधित दोहे उपलब्ध हैं। इसमें भक्ति, नीति और श्रृंगार सम्बन्धी दोहे मुख्य है। “सतसई” संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है “सात सौ” या उससे अधिक दोहे संकलित ग्रंथ। बिहारी सतसई इस अर्थ के भीतर आता है, जिसमें 719 दोहे संकलित हैं। यह रचना श्रृंगार, अलंकार, रस, नायिका-भेद आदि सभी दृष्टियों से रीतिकाल की सर्वश्रेष्ठ रचना कहीं जा सकती है।
बिहारी में भक्ति भावना
बिहारी श्रृंगारी कवि हैं। श्रृंगार के संयोग- वियोग पक्ष का आकर्षक वर्णन उन्होंने किया है। बिहारी अवश्य भक्त है,
किंतु सूर का जैसा नहीं है । बिहारी राधा- वल्लभ संप्रदाय के विश्वासी हैं । उनकी भक्ति राधा और कृष्ण के प्रति होता है।
बिहारी अपना अमर ग्रंथ सतसई के मंगलाचरण में राधा और कृष्ण के जो रूप खींच देता है वह सचमुच उनकी भक्ति का
सच्चा उदाहरण है –
मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोय ।
जा तन की झाई परे, स्याम हरित दुति होय ।।
बिहारी और श्रृंगार रस
रीति काल के सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में बिहारी का आदरणीय स्थान है। “बिहारी सतसई” में जितना श्रृंगार वर्णन
मिलता है उतना मध्य काल के और किसी कवि में नहीं मिलता है। उन्होंने श्रृंगार के दोनों पक्षों को, संयोग श्रृंगार और वियोग
श्रृंगार का अत्यंत आकर्षक वर्णन किया है । इसके अलावा उन्होंने नीति, भक्ति, ज्योतिष, गणित, आयुर्वेद और इतिहास
संबंधी दोहों की रचना भी की है।
बिहारी और प्रकृति चित्रण
प्रकृति के सौंदर्य चित्रण में बिहारी ने अत्यंत कुशलता दिखाया है । असल में प्रकृति की उतनी रंग-विरंग और कहीं नहीं है । बिहारी ने उसकी प्रकृति का खूबसूरत तथा अनुपम ढंग में चित्रण किया है। अथवा प्रकृति वर्णन बिहारी में जितनी उपलब्ध है उतनी उनके समकालीन और किसी कवि में नहीं मिलता है । उसके ग्रीष्म ऋतु का वर्णन देखिए –
कहलाने एकत बसत अहि मयूर मृग बाघ ।
जगत तपोतन से कियो, दरिघ दाघ निदाघ ।।
यह दोहा यह साबित करता है कि प्रकृति चित्रण में बिहारी सिद्धहस्त है ।
भाषा-शैली
बिहारी ने मुख्य रूप में वृंदावन में प्रचलित साहित्यिक ब्रजभाषा का उपयोग किया है । ब्रजभाषा की सबसे बड़ी विशेषता उसका लालित्य और माधुर्य है । इसका सही रूप हम सूरदास के पदों में पाये जाते हैं । वही रूप बिहारी भी अपने दोहे में दर्शाये हैं ।
भाषा में पूर्वी हिन्दी, बुंदेलखंडी, फारसी तथा उर्दू आदि भाषाओं के शब्द भी पाये जाते हैं । उन्होंने मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग के द्वारा भाषा आकर्षक बना दी । उनकी शैली मुक्तक है ।
काव्य-विषय के अनुसार बिहारी अपनी शैली बदलते है । उन्होंने श्रृंगार विषयक दोहे में माधुर्य पूर्ण व्यंजना किया है । भक्ति और नीति संबंधी दोहे में उन्होंने सरस शैली अपनायी तो गणित, दर्शन, ज्योतिष आदि का चमत्कार का प्रयोग किया है ।
रस
बिहारी मुख्य रूप से राधा-कृष्ण के चित्रकार थे । इसलिए उनकी सतसई में श्रृंगार रस बन गया है । इसके अलावा उन्होंने शांत, हास्य, करुण जैसे रसों का इस्तेमाल भी किया है ।
छंद / अलंकार
बिहारी ने सतसई में दोहा छंद की प्रमुखता दी है । अतिशयोक्ति, अन्योक्ति, सांगरूपक अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अन्वय, असंगति, व्यतिरेक, सन्देह, भ्रांतिमान, विरोधाभास, मानवीकरण, दृष्टांत आदि अनेक अलंकारों का उपयोग बिहारी ने किया है ।
काव्यगत विशेषताएँ
बिहारी कृत सतसई हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि मानी जाती है। इसमें उसकी मौलिक एवं पूर्ण विकसित भावना दृष्टिगोचर है। प्रकृति के मनोरम वर्णन, सौन्दर्य और प्रेम वर्णन, भक्ति वर्णन, और नीति के वर्णन में बिहारी अद्वितीय है। भाव पक्ष और कला पक्ष की दृष्टि में सतसई के संपूर्ण दोहे अपने आप में सफल है।
6.2.2 अन्य रीतिबद्ध कवि
वृंद
वृंद औरंगजेब तथा किशनगढ़ के महाराज राजसिंह के आश्रय में रहते थे। हिन्दी साहित्य के “सूक्तिकार” के रूप में
वृंद जाने जाते हैं।
वृंद की प्रमुख रचनाएँ हैं :- “बारहमासा”, “भाव पंचाशिका”, “नयन पच्चीसी”, “पवन पच्चीसी”, “श्रृंगार शिक्षा”, “यमक सतसई”।
रसनिधि (पृथ्वी सिंह)-
रचनाएँ- “रतनहजारा” (बिहारी सतसई का अनुकरण), “विष्णुपद कीर्तन”, “कवित्त”, “बारहमासा”, “रसनिधि सागर”, ‘हिंडोला”।
कृष्ण कवि –
कृष्ण कवि ने बिहारी सतसई के प्रत्येक दोहे पर नए सवय्ये की रचना की। ‘बिहारी सतसई की टीका”, ‘विदुर
प्रजागर” आदि प्रमुख रचनाएँ हैं।
हठीजी – ‘श्री राधा सुधाशतक’
बेनी वाजपेयी – ‘फुटकर छंद’
पजनेस – ‘पजनेस प्रकाश’, ‘नखशिख’, ‘मधु प्रिया’
Critical Overview / आलोचनात्मक अवलोकन
रीतिसिद्ध कवि काव्यशास्त्र के आधार पर काव्य विवेचन नहीं करते। सीधे काव्यांगों का उदाहरण प्रस्तुत करना उनकी विशेषता हैं। छंद, अलंकार, और रस का विवेचन इनकी रचेनाओं में नहीं देख सकता।
Recap / पुनरावृत्ति
|
Objective Questions / वस्तुनिष्ट प्रश्न
|
Answer / उत्तर
|
Assignment / प्रदत्तकार्य
|
Self Assesment / आत्म मूल्याकन
|