इकाई : 3
प्रेम काव्य परंपरा , कवि और प्रेम काव्य की विशेषताएँ
Learning Outcomes / अध्ययन परिणाम
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Prerequisites / पूर्वापेक्षा
सूफी रचनाएँ लोकमंगलकारी हैं। इन रचनाओं द्वारा जातिगत, धर्मगत एवं वर्गगत विद्वेष को मिटाने का सरस प्रयास |
Key Themes / मुख्य प्रसंग
लोकजागरणवादी प्रवृत्ति
मानवतावादी प्रवृत्ति
प्रेम-भावना की प्रवृत्ति
रहस्यवाद
विरह-वर्णन
प्रबन्ध कल्पना
गुरु का सम्मान
प्रकृति-चित्रण
धार्मिक एकता का प्रचार
लोक भाषा की स्वीकृति
कथानक रुढ़ियों का प्रयोग
भारतीय एवं फ़ारसी तत्त्वों का सामंजस्य
Discussion / चर्चा
4.3.1 प्रेमाश्रयी काव्यधारा
हिन्दी के भक्तिकाल की एक विशिष्ट काव्यधारा है प्रेमाश्रयी काव्यधारा । इसे अनेक नामों से पुकारा जाता है- प्रेममार्गी (सूफी शाखा), प्रेम काव्य, प्रेमगाथा, प्रेम कथानक काव्य, प्रेमाख्यानक, प्रेमाख्यान आदि, लेकिन ये नाम अस्पष्ट हैं, ऐसे नामकरण से प्रेम-चित्रण वाले किसी भी काव्य को इस परम्परा में स्थान मिल जाएगा। जबकि प्रेमाश्रयी काव्यधारा से तात्पर्य मात्र स्वच्छंद प्रेम से है, जिसे अंग्रेजी में ‘रोमांस’ कहा गया है। इस काव्य परम्परा का सम्बन्ध एक ओर तो विश्व में व्याप्त रोमांस काव्य परम्परा से है, तो दूसरी तरफ इसका सम्बन्ध भारत की काव्य परम्परा से है। इसीलिए इस काव्यधारा का नामकरण ‘प्राचीन रोमांसिक कथा काव्य परम्परा’ किया है।
हिन्दी में सूफी कवियों ने अपने सम्प्रदाय के प्रचार करने के लिए फारसी मसनवियों के आधार पर किया है। इसी से इसका नाम सूफी काव्य-परम्परा हो गया। साहित्य के इतिहासकार मानते हैं कि इन काव्यों की प्रेम-पद्धति भारतीय न होकर विदेशी है, क्योंकि इनका प्रेम एकान्तिक और इनका आदर्श अरबी प्रेम कहानियाँ हैं।
सामान्यतः इस परम्परा के कवियों को सूफी मतावलम्बी मान लिया जाता है, जो भ्रामक है, इस परम्परा के 55 में से 35 कवि हिन्दू हैं, जिन्होंने काव्यारम्भ में हिन्दू देवी देवताओं की वन्दना करते हुए हिन्दू धर्म में पूर्ण विश्वास प्रकट किया है। उनके द्वारा सूफी मत के प्रचार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मुस्लिम कवियों ने भी अपना उद्देश्य घोषित करते हुए स्पष्ट लिखा है कि शृंगार रस के चित्रण द्वारा पाठकों का मनोरंजन एवं यश- कामना के उद्देश्य से उन्होंने प्रेम-काव्यों की रचना की है।
4.3.2 प्रमुख सूफी कवि
सूफी कवियों में मुहम्मद दाऊद (मुख्य रचना – चंदायन), मंझन (मुख्य रचना – मधुमालती), कुतुबन (मुख्य रचना – मृगावती), मालिक मुहम्मद जायसी (मुख्य रचना – पद्मावत महाकाव्य), नन्ददास (मुख्य रचना – रूपमंजरी), असाइत (मुख्य रचना – हंसावली), उसमान (मुख्य रचना – चित्रावली), शेख नबी (मुख्य रचना– ज्ञानदीपक), नुरमोहम्मद (मुख्य रचना – अनुराग बाँसुरी), कासीमशाह (मुख्य रचना – हंस जवाहिर) आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय है ।
4.3.3 प्रेमाश्रयी काव्यधारा की विशेषताएँ
इस परम्परा की एक विशेषता है कि ये सामान्यतः नायिकाओं के नाम पर रचनाएँ लिखी गई हैं- जैसे पद्मावती, सत्यवती, मृगावती आदि। कुछ रचनाओं में नायक-नायिका दोनों के नाम हैं – माधवानन्द-कामकन्दला, प्रेम विलास-प्रेमलता, नल-दमयन्ती आदि। पद्मावती कथा आदि। कुछ पुस्तकों के नामकरण के अन्य आधार भी हैं। जैसे- अनुराग-बाँसुरी, प्रेम-चिनकारी, प्रेम-दरिया आदि। यह जरूर है कि ऐसी पुस्तकों के नामकरण में नायिकाओं के नाम की प्रमुखता है। कुछ रचनाओं के नाम के अन्त में “कथा’ शब्द आया है।
लोकजागरणवादी प्रवृत्ति:
भक्ति आन्दोलन की लोकजागरणवादी भूमिका के निर्माण में सूफी सन्तों का महत्त्व अविस्मरणीय है। इन कवियों ने जाति-पाँति एवं सम्प्रदाय की दीवारों की ह॒द को तोड़ा तथा मनुष्यता का नया दर्शन प्रस्तावित किया। इन सूफी सन्तों का आम जनता ने मुक्त हृदय से स्वागत किया। यही कारण है कि इन्हें भी सन्त कहा गया। कबीर एवं जायसी की परम्परा के सूफियों ने एक साझी लोक-संस्कृति का निर्माण किया, बताया कि सन्त सिर्फ हिन्दू ही नहीं, मुसलमान भी हो सकते हैं।
मानवतावादी प्रवृत्ति:
सूफी सन्त काव्य के सामाजिक नवजागरण को समझने के लिए तथा सामाजिक सांस्कृतिक आधार को समझने के लिए शोषित एवं नीची जातियों, विशेषकर कामगारों, बुनकरों, किसानों, कारीगरों, व्यापारियों एवं सामन्तों के पारस्परिक सामाजिक रिश्तों को समझना जरूरी है, क्योंकि ये सन्त इन्हीं जातियों, समुदाय से आए थे। एक प्रकार यह पूरी काव्य परम्परा सामन्ती-सवर्णी सोच की, आचार-विचार की, प्रतिक्रिया थी। सन्त-साहित्य का सीधा सम्बन्ध 15वीं, 16वीं, 17वीं सदी के भारतीय समाज के सामन्ती ढाँचे के कमजोर पड़ने से है। भारतीय आमजीवन की सबसे त्रासद भूमिका के रूप में सामन्ती ढाँचा था। इन सन्तों ने धार्मिक विद्वेष के बदले धार्मिक सहिष्णुता एवं मानववाद का प्रचार कर व्यापक जनता की इच्छाओं को पूर्ण किया, साथ ही उनकी आहत संवेदनाओं का स्पर्श किया।
प्रेम-भावना की प्रवृत्ति :
इस काव्य परम्परा के कवियों के सम्पूर्ण चित्रण का केन्द्र ‘प्रेम’ है। इनकी प्रेम-भावना शुंगारिकता का स्पर्श करती हुई भी उसे लौकिक से अलौकिक बना देती है। इनकी प्रेम भावना संघर्ष एवं साहस से अनुप्राणित है, जो सामाजिक मर्यादा को तथा परम्परा को विशेष महत्त्व नहीं देती। इनका प्रेम सौन्दर्यजन्य आकर्षण से शुरू होता है और परिस्थितियों के अनुसार उत्तरोत्तर गम्भीर होता चला जाता है। तथापि, सौन्दर्य का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन आज के पाठक को ग्राह्य नहीं होता। साथ ही इनका प्रेम कभी-कभी वासना एवं कामुकता का आवेग बन जाता है। यह वासना आगे चलकर निखर जाती है और विशुद्ध प्रेम का रूप ले लेती है। काम भावना प्रेम भावना के रूप में बदल जाती है।
विरह-वर्णन:
सूफी काव्य का प्रधान विषय प्रेम है, जिसके अन्तर्गत कवियों ने संयोग का कम, विरह का अधिक चित्रण किया है। वस्तुतः यहाँ विरह-दशा ही वह मनोभूमि है, जो चित्त की समाधि या प्रिय के प्रति ऐकान्तिक निष्ठा लाती है। इन कवियों ने विरह-वर्णन के अन्तर्गत ऋतु-वर्णन, बारहमासा आदि का विशेष वर्णन किया है, पर कभी-कभी यह विरह वर्णन अतिरंजित एवं वायवीय हो गया है, जैसे विरह के ताप से सूर्य का लाल हो जाना, गेहूँ का पेट फट जाना, कौए का काला पड़ जाना, आँखों से आँसू की जगह खून निकलना आदि। इससे कहीं-कहीं विरह-वर्णन वीभत्स हो जाता है। पद्मावत में नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।
रहस्यवाद :
ज्ञान के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है, भावना के क्षेत्र में आकर वही रहस्यवाद हो जाता है। सूफी कवियों का रहस्यवाद भावनात्मक रहस्यवाद है। इन सूफी कवियों को ‘प्रेम की पीर’ का कवि कहा गया। इन कवियों ने “रहस्यात्मकता के माधुर्य भाव’ का प्रचार किया, जिसका प्रभाव कबीर एवं कृष्ण भक्ति परम्परा पर स्पष्ट दिखाई देता है। सूफी कव्वाल गाते-गाते हाल की दशा में चले जाते थे।चैतन्य महाप्रभु भी गाते-गाते मूर्छित हो जाते थे। मद, प्याला, उन्माद, ईश्वर का विरह इनके रहस्यवाद की रूढ़ियाँ हैं। कबीर का माधुर्य भाव सूफी प्रभाव से पूर्ण है। दादू, दरिया साहब जैसे निर्गुणसन्तों का ज्ञानमार्ग पूरी तरह सूफी रहस्यवाद है। भारतवर्ष में जब सूफी आए तो उन्हें साधनात्मक रहस्यवाद, हठयोग, तंत्र, रसायन आदि का जाल मिला था। फलतः, हठयोग की अनेक बातों का समावेश सूफियों के रहस्यवाद में मिलता है। सूफियों के रहस्यवाद में प्रेम एवं भावना की गहराई है और साधना की शक्ति है। रमणीय और सुन्दर अद्वैती रहस्यवाद के दर्शन पद्मावत में होते हैं। वस्तुतः भावात्मक रहस्यवाद सूफियों का ही लाया हुआ है।
प्रबन्ध कल्पना :
लौकिक प्रेम कहानियों के माध्यम से अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना के लिए इन कवियों ने प्रबन्ध काव्यों की रचना की है। इन्होंने प्रबन्ध संगठन का हमेशा ख्याल रखा है। इनकी प्रेम कहानियाँ प्रायः एक ही साँचे में ढली हैं, उनमें मौलिकता की कमी है, यान्त्रिकता है। फलतः इनकी प्रबन्ध कल्पना अस्वाभाविक एवं अमनोवैज्ञानिक हो गई है। वस्तुतः सूफी प्रबन्धकाव्य भारतीय काव्यशास्त्र के नियमों-आदर्शों की राह से अलग हैं। इन कवियों ने परम्परा से प्राप्त भारतीय कथानकों में रूढ़ियों का खूब उपयोग किया है। शैतान को माया के समान साधना-श्रेष्ठ करने वाला बताया गया है। पद्मावत में राघव शैतानी शक्ति है। सूफी कवियों की शैली मसनवी है। मसनवी शैली में इन कवियों ने भारतीय प्रेम कथाओं को स्वर दिया है। दोहा, चौपाई, झूलना एवं कुण्डलिया इन कवियों द्वारा प्रयुक्त प्रमुख छंद हैं।
गुरु को सम्मान:
इस परम्परा में गुरु को ईश्वर तुल्य दर्जा प्राप्त है। वही साधक को सिद्धि तक पहुँचाने का माध्यम है। गुरुकृपा से शैतान एवं माया दोनों का नाश होता है।
प्रकृति-चित्रण:
सूफियों का प्रेम-स्वरूप आलम्बन ईश्वर प्रकृति के कण-कण में व्याप्त है। प्रकृति इनके लिए स्पृहणीय एवं आकर्षणपूर्ण है। ‘रवि शशि नखत दीपहीं ओही जोती’, ईश्वरीय ज्योति के कारण ही सब कुछ प्रकाशमान है। सूफियों के यहाँ प्रेमियों के विरह में प्रकृति भी समान रूप से दुःख महसूस करती है। वह उनके विरह ताप को कम करने की कोशिश करती है।
धार्मिक एकता का प्रचार:
सूफी-काव्य परम्परा के पूर्व निराशावादी सन्तों ने भक्ति के सामान्य मार्ग की प्रतिष्ठा कर दी थी, धार्मिक एकता का श्रीगणेश कर दिया था, परन्तु उन्हें अपने उद्देश्य में सफलता नहीं मिली थी। समाज में व्याप्त कुरीतियों, कर्मकाण्डों और पाखण्डों के लिए कबीर ने हिन्दू-मुसलमान दोनों को फटकार कर दिये। उनके स्वर में खण्डनात्मकता, प्रतिक्रिया एवं चुभने वाली बातें थीं, जिससे हिन्दू-मुसलमान दोनों चिढ़ गए। दूसरी तरफ प्रेमाख्यानक परम्परा के कवियों ने किसी सम्प्रदाय या मतवाद का खण्डन नहीं किया। इनकी पद्धति मनोवैज्ञानिक थी। शुक्ल जी लिखते हैं, “प्रेम स्वरूप ईश्वर को सामने लाकर सूफी कवियों ने हिन्दू-मुसलमान दोनों को मनुष्य के सामान्य रूप में दिखाया और भेदभाव के दृश्यों को हटा कर पीछे कर दिया।” इस काव्य परम्परा में कोई साम्प्रदायिक आग्रह नहीं है। वस्तुतः इन कवियों ने, जिन्हें सूफी कवि कहा गया, भारतीय भक्ति आन्दोलन की व्यापक शक्ति को जनता के हृदय तक पहुँचाया है। इनका साहित्य हृदय की मुक्तावस्था से उपजा साहित्य है जो धार्मिक एकता का सन्देश देता है।
लोक भाषा की स्वीकृति :
पूर्वी प्रान्त के सभी सूफी कवियों की भाषा अवधी है, जिसका ठेठ देसी रूप जायसी के पद्मावत में मिलता है। उनकी कविता में पहली बार हिन्दी भाषा सहज काव्य प्रवाह में बहने लगती है। दाऊद एवं कुतुबन की रचनाओं से तुलना करने पर लगता है कि अवधी भाषा काव्य-प्रवाह में कुछ रोड़े अटका रही है, पर जायसी की भाषा बिल्कुल आम जनता की भाषा हो जाती है।
रुढ़ियों का प्रयोग :
इन कवियों ने कथानक को गति देने तथा उसे लोकप्रिय बनाने के लिए परम्परा से प्राप्त भारतीय कथानकों की रूढ़ियों का प्रयोग किया है जैसे चित्रदर्शन, स्वप्न-दर्शन, शुक-सारिका संवाद, मन्दिर या उद्यान में नायक-नायिका का मिलन, युद्ध, संघर्ष आदि रूढ़ियाँ सभी सूफी कवियों की रचनाओं में मिलती हैं।
भारतीय एवं फ़ारसी तत्त्वों का सामंजस्य :
इन कवियों की प्रेम गाथाओं में भारतीय और फ़ारसी कथा-तत्त्वों का अद्भुत सामंजस्य मिलता है। इन्होंने इस्लाम धर्म और हिन्दू धर्म का सामंजस्य करके कथानक का निर्माण किया। इनकी रचनाओं में फारसी रहस्यवाद तथा भारतीय अद्वैतवाद से मेल खाता है। प्रकृति की समस्त सत्ता में इन्हें ईश्वरीय तत्त्व की उपस्थिति दिखाई देती है। सूफी काव्यों में परमात्मा को प्रियतमा मानना सूफियों की खोज है।
चर्चा के मुख्य बिंदु
जायसी मूलतःप्रेम कवि है|
प्रेम काव्य परम्परा विशुद्ध भारतीय अध्यात्मवादी परम्परा है।
Critical Overview / आलोचनात्मक अवलोकन
- सूफियों ने लौकिक प्रेम कहानियों के माध्यम से अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना करने के लिए प्रबन्ध काव्यों की रचना की है।
- प्रेम भावना सूफी काव्य का प्रधान विषय है, जिसके अन्तर्गत कवियों ने संयोग का कम, विरह का अधिक चित्रण किया है।
Recap / पुनरावृत्ति
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Objective Questions / वस्तुनिष्ट प्रश्न
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Answer / उत्तर
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Assignment / प्रदत्तकार्य
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Self Assesment / आत्म मूल्याकन
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