इकाई : 3
भक्ति आन्दोलन और भक्ति आन्दोलन की उत्पत्ति और विकास
Learning Outcomes / अध्ययन परिणाम
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Prerequisites / पूर्वापेक्षा
भक्ति का मूल ऱ्ुुिैत दक्षिण भारत से शुरू हुआ । भक्ति आन्दोलन हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। भक्ति आंदोलन के नेता है रामानन्द। ईश्वर की भक्ति की ओर उन्मुख होना इस युग की प्रमुख प्रवृत्ति है। भारतीय धर्म साधना में भक्ति की एक सुस्पष्ट एवं सुदीर्घ परम्परा शुरू हुई। |
Key Themes / मुख्य प्रसंग
भक्ति आंदोलन के उन्नायक रामानन्द ने राम को भगवान के रूप में प्रतिष्ठित कर उसे केन्द्र बनाया।
अनेक विद्वानों ने मध्य युग के भक्ति आन्दोलन को वैदिक परम्परा की मूल बातों के उदय के रूप में देखने लगे हैं।
रूढिवाद के विस्र्द्ध आवाज़।
भक्ति आन्दोलन में जाति भेद और धार्मिक शत्रुता।
आत्मसमर्पण की भावना।
नाम की महत्ता एवं गुस्र् की महत्ता पर बल दिया गया।
Discussion / चर्चा
3.3.1 भक्ति आंदोलन की उत्पत्ति
मध्यकालीन भारत के सांस्कृतिक इतिहास में भक्ति आन्दोलन एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। इस काल में सामाजिक-धार्मिक सुधारकों द्वारा समाज में विभिन्न तरह से भगवान की भक्ति का प्रचार-प्रसार किया गया। सिख धर्म के उद्भव में भक्ति आन्दोलन की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। पूर्व मध्यकाल में जिस भक्ति धारा ने अपने आन्दोलनात्मक सामर्थ्य से समूचे राष्ट्र की शिराओं में नया रक्त प्रवाहित किया, उसके उद्भव के कारणों के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है लेकिन एक बात पर सहमति है कि भक्ति की मूल धारा दक्षिण भारत में छठवीं-सातवीं शताब्दी में ही शुरू हो गई थी। 14 वीं शताब्दी तक आते-आते इसने उत्तर भारत में अचानक आन्दोलन का रूप ग्रहण कर लिया। किन्तु यह धारा दक्षिण भारत से उत्तर भारत तक कैसे पहूंची, उसके आन्दोलनात्मक रूप धारण करने में कौन- कौन कारण रहे, इस पर विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है।अब बहुत से विद्वान भक्ति आन्दोलन से सम्बन्धित 19 वीं-20 वीं शताब्दी के विचारों पर प्रश्न उठाने लगे हैं। अनेक विद्वान अब मध्य युग के भक्ति आन्दोलन को वैदिक परम्परा की मूल बातों का नए रूप में उदय के रूप में देखने लगे हैं। देश में मुसलमान शासन स्थापित होने के कारण हिन्दू जनता हताश, निराश एवं पराजित हो गई और पराजित मनोवृत्ति में ईश्वर की भक्ति की ओर उन्मुख होना स्वाभाविक था। हिन्दू जनता ने भक्तिभावना के माध्यम से अपनी आध्यात्मिक श्रेष्ठता दिखाकर पराजित मनोवृत्ति का शमन किया। तत्कालीन धार्मिक परिस्थितियों ने भी भक्ति के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान किया। नाथ, सिद्ध योगी अपनी रहस्यदर्शी शुष्क वाणी में जनता को उपदेश दे रहे थे। भक्ति, प्रेम आदि ह्रदय के प्राकृत भावों से उनका कोई सामंजस्य न था। भक्तिभावना से ओतप्रोत साहित्य ने इस अभाव की पूर्ति की। भक्ति का मूल स्रोत दक्षिण भारत में था। जहाँ 7वीं शती में आलवार भक्तों ने जो भक्तिभावना प्रारंभ की उसे उत्तर भारत में फैलने के लिए अनुकूल परिस्थितियां प्राप्त हुईं। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने शुक्लजी के मत से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि भक्तिभावना पराजित मनोवृत्ति की उपज नहीं है और न ही यह इस्लाम के बलात प्रचार के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई। उनका तर्क यह है कि हिन्दू सदा से आशावादी जाति रही है तथा किसी भी कवि के काव्य में निराशा का पुट नहीं है। जार्ज ग्रियर्सन भक्ति आन्दोलन का उदय ईसाई धर्म के प्रभाव से मानते है। उनका मत है कि रामानुजाचार्य को भावावेश एवं प्रेमोल्लास के धर्म का सन्देश ईसाइयों से मिला। भारतीय धर्म साधना में भक्ति की एक सुस्पष्ट एवं सुदीर्घ परम्परा रही है। रामानुजाचार्य, रामानंद, निम्बार्काचार्य, बल्लभाचार्य जैसे विद्वानों ने अपने सिध्दांतों की स्थापना के द्वारा भक्तिभाव एवं अवतारवाद को दृढ़तर आयामों पर स्थापित किया, जिसे सूर, कबीर, मीरा, तुलसी ने काव्य रूप प्रदान किया।
चर्चा के मुख्य बिंदु
भक्ति आन्दोलन में जाति भेद और धार्मिक शत्रुता तथा रीति रिवाजों का विरोध|
धार्मिक परिस्थितियों से भक्ति के प्रसार मे महत्त्वपूर्ण योगदान|
Critical Overview / आलोचनात्मक अवलोकन
भक्ति भगवान के प्रति मानव की प्रेम भावना का प्रवाह है । समानता का समर्थन करना भक्ति आंदोलन का लक्ष्य था।
Recap / पुनरावृत्ति
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Objective Questions / वस्तुनिष्ट प्रश्न
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Answer / उत्तर
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Assignment / प्रदत्तकार्य
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Self Assesment / आत्म मूल्याकन
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