इकाई : 3
वीरगाथा काल के अन्य कवि
Learning Outcomes / अध्ययन परिणाम
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Prerequisites / पूर्वापेक्षा
आदिकाल में वीर काव्यों के अतिरिक्त कुछ और काव्य कृतियॉं भी उपलब्ध है । जिसे धारा उनको धार्मिक काव्य कह कर साहित्य की मुख्य धारा से बाहर रखा है। वीरगाथा काल की या वीरगाथा काल की सभी रचनाएं हिंदी साहित्य के विकास के आधार भूमि तैयार करती है । |
Keywords / मुख्य बिन्दु
वीर और श्रृंगार रस
युद्ध वर्णन
Discussion / चर्चा
वीरगाथा काल का साहित्य आनेक अमूल्य रचनाओं का सागर है , इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी भाषा का नहीं है ,और न ही किसी अन्य भाषा की परंपरा का साहित्य एवं रचनाएँ अविच्छिन्न प्रवाह के रूप में इतना दीर्घ काल तक रहने पाई है ।
2.3.1 वीरगाथा काल की मुख्य रचना एवं रचना या रचनाकार :-
- स्वयंभू – पाऊम चरिउ, रिट्ठणेमि चरिउ ।
- सरहपा – दोहा कोश ।
- सबरपा – चर्यापद ।
- कण्हपा – कण्हपा गीतिका , दोहा कोश ।
- गोरखनाथ नाथ( नाथपंथ के प्रवर्तक ) – सबदी , पद , प्राण , संकली सिष्या दासन ।
- चंदबरदाई – पृथ्वीराज रासो ।(शुक्ल के अनुसार हिंदी का प्रथम महाकाव्य ) ।
- शारंगधर – हम्मीर रासो ।
- दलपति विजय – खुमाण रासो।
- जग्निक – परमाल रासो ।
- नल्लसिंह सिंह भट – विजयपाल रासो ।
- नरपति नाल्ह- बीसलदेव रासो ।
- अब्दुल रहमान – संदेश रासक ।
- अज्ञात – मुंज रासो ।
- देव सेन – श्रावकाचार ।
- जिन दत्तसूरी – उपदेश रसायन रास ।
- आसुग कवि – चंदनबालारास ।
- जिनधर्मसूरी – स्थूलीभद्र रास ।
- शालीभद्र सूरी – भारतेश्वर बाहुबलिरास ।
- विजय सेन – रेवंत गिरी रास ।
- सुमितगिण – नेमिनाथ रास ।
- हेमचंद्र – सिद्ध हेमचंद्र ,शब्दनुशासन ।
- विद्यापत- पदावली( मैथिली ) कीर्तिलता व,कीर्तिपताका ( ,अवहट्ट ) लिखनवली ( संस्कृत )
- कलोल कवि – ढोला मारू रा दूहा ।
- मधुकर कवि – जयमकांजस जस चंद्रिका ।
- भटकेदार -जय चंद्र प्रकाश ।
2.3.2 रासो नाम की अन्य रचनाएं :
- कलियुग रासो – रसिक गोविंद।
- कायम खॉं रासो – न्यामत खां जान कवि ।
- राम रासो – समय सुन्दर ।
- राणा रासो – दयाराम ( दयाल कवि )
- रतन रासो – कुम्भकर्ण ।
- कुमरपाल रासो – देव प्रभ ।
वीरगाथा काल की रचनाएं और रचनाकार उनके कालक्रम की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है । हिंदी साहित्य के आदिकाल से वज्रायनि सिद्ध कापालिक आदि देश के पूर्वी , भागों में और नाथपंथ जोगी पश्चिमी भागों में रमते चले आ रहे थे ।
2.3.3 प्रमुख जैन कवियों का नाम :-
स्वयंभू : अपभ्रंश भाषा का वाल्मीकि ।
रचनाऐं : पउम चरिउ , स्वयंभू छंद , रिट्ठणेमि चरिउ ।
पुष्पदंत : अपभ्रंश का व्यास ।10वीं शताब्दी ।
रचनाएँ : महापुराण ,जसहर चरिउ , णयकुमार चरिउ।
धनपाल : 10वीं शताब्दी ।
रचना : भविस्सयत कहा ।
इसके अतरिक्त , मुनीर राम सिंह कृत पाहूठ दोहा , देवसेन कृत सावयधम्मा दोहा , जोईंदू कृत परमात्मा प्रकाश और योग सागर ।
2.3.4 प्रमुख सिद्ध कवियों का नाम : –
सरहपा : दोहा कोश, चर्यापद
लूईपा, शबरपा , डोम्बिपा , तंत्रिपा : चर्यगीत
सिद्ध कवियों की रचनओं में काव्य की दृष्टि से तीन रूप मिलते हैं :-
- संप्रदाय के सिद्धांतों में सेे रहस्यात्मक साहित्य । उनकी यह भावना अधिकांश चर्यगीतों में व्यक्त हुई है ।
- खंडन मंडन प्रधान उपदेशात्मक साहित्य ।
- आचार तथा नीति प्रधान साहित्य ।
2.3.5 नाथ साहित्य के प्रमुख कवियों का नाम :–
- आदि नाथ शिव है ।
- प्रमुख शिष्य के रूप में मत्स्येंद्रनाथ का नाम आता है ।
- गोरखनाथ या गोरक्षनाथ
- नाथ साहित्य विशुद्ध रूप से योग परक साहित्य है।
- नाथ कवियों के वाणियों में काव्य सौंदर्य का अभाव है ।
- नाथ कवियों ने गुरु को अधिक महत्व दिया है ।
वीरगाथा काल में खण्ड काव्य , गीति काव्य , महाकाव्य, ऐतिहासिकता परक लौकिक प्रेम काव्यों , धार्मिक काव्यों ,रूपक साहित्य, गद्य साहित्य आदि साहित्य के नाना विधाओं का प्रणयन हूआ है ।
चर्चा के बिंदु
धार्मिक कवियों की योगदान
काव्यगत विशेषताएं
वैविध्य पूर्ण भाषाा
Critical Overview / आलोचनात्मक अवलोकन
हिंदी साहित्य के आदिकाल के विकास में जैन , नाथ और सिद्ध कवियों का योगदान है। अपभ्रंश से हिंदी का विकास होने के कारण जैन साहित्य हिंदी पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा।
सामान्य जनता का मन भगवद् भक्ति की स्वभाविक ह्रदय पद्धति से हटकर अनेक प्रकार के मंत्र ,तंत्र और उपाचारों में उलझ गया था । जनता का विश्वास सिद्धियों पर जमने लगा था ।
Recap / पुनरावृत्ति
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Objective types Questions / वस्तु निष्ठ प्रश्न
1. दो जैन कवियों के नाम लिखिए ? |
Answers / उत्तर
1. स्वयंभू , पुष्पदन्त । |
Assignment / प्रदत्तकार्य
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Self Assesment / आत्म मूल्याकन
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Reference Book / सन्दर्भ ग्रंथ सूची
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E- Content / ई – सामग्री
https://hi.wikipedia.org/wiki/आदिकाल |