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HISTORY OF HINDI LITERATURE
0/34
Environmental Studies
English Language and Linguistics
Introduction to Mass Communication
Private: BA Hindi
About Lesson

इकाई : 5

कृष्ण काव्य परंपरा और प्रमुख कवि

Learning Outcomes / अध्ययन परिणाम

  • मध्यकालीन-भक्तिकालीन हिन्दी कविता के सौंदर्य शास्त्र समझता है।
  • सूरदास के समय की सामाजिक, राजनीतिक, भक्ति संबंधी परिस्थितियाँ, कृष्ण भक्ति धारा का महत्व, कृष्ण भक्त कवियों के सामाजिक दृष्टिकोण आदि पर जानकारी प्राप्त करता है ।
  • अष्टछाप के कवियों के स्थान एवं उनकी मुख्य रचनाओं की विशेषताएँ समझता है ।
  • महाकवि सूरदास के जन्म, व्यक्तित्व, भक्ति, कृतित्व, आदर्श या दृष्टिकोण, उसकी देन तथा मृत्यु आदि को समझता है।

Prerequisites / पूर्वापेक्षा

भक्तिकाल की सगुण भक्ति धारा के एक शाखा है कृष्ण भक्ति । कृष्ण, भगवान विष्णु के अवतार हैं । कृष्ण के चरित्र
के आधार पर रचित रचना कृष्ण भक्ति साहित्य के नाम से जाने जाते हैं । कृष्ण भक्ति काव्य धारा के आधार ग्रंथ
श्रीमद् भागवत है । काशी के सन्यासी वल्लभाचार्य ने अपने इष्ट देव कृष्ण की भक्ति के प्रचार-प्रसार का नेतृत्व दिया
था । वल्लभाचार्य द्वारा संस्थापित पुष्टि मार्ग कृष्ण भक्ति धारा को गतिशील बना दिया है । अधिकांश कृष्ण भक्त
कवियों ने वृंदावन में प्रचलित ललित-कोमल ब्रजभाषा को काव्य-भाषा के रूप में स्वीकार किया है । कृष्ण भक्ति के
प्रचार-प्रसार में आचार्य वल्लभ एवं उनके सुपुत्र गोसाई विट्ठलनाथ ने महत्वपूर्ण योगदान किया है ।

Key Themes / मुख्य प्रसंग

महात्मा सूरदास हिन्दी के सगुण भक्ति को प्रवाहमान बनानेवाले कृष्ण भक्त कवियों में सर्वश्रेष्ठ है।
सूरदास श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक तथा ब्रजभाषा के सर्वोच्च कवि है । उन्हें हिन्दी साहित्य के सूर्य कहा जाता है ।
सूरदास के गुस्र् है महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य ।
सूरदास अंधे थे ।
सूर को स्वामी विट्ठलनाथ ने पुष्टि मार्ग का जहाज़ कहा है ।

Discussion / चर्चा

4.5.1 कृष्ण काव्य परंपरा और सूरदास

भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का मेरुदंड है । महात्मा सूरदास भक्तिकाल के सगुण भक्ति धारा के सर्वश्रेष्ठ कृष्ण भक्त कवि है ।  कवि सूर की भाषा ब्रजभाषा है । उनकी अंधता के बारे में भी विद्वानों में मतभेद है । कुछ लोग उसे जन्मांध मानते है तो और कुछ लोगों के मत में पहले सूर को आँखें थे, बाद में वे अंधे हुए । इस विषय में डा. श्यामसुन्दरदास ने अपना मत प्रकट किया है – सूर वास्तव में जन्मान्ध नहीं थे, क्योंकि श्रृंगार तथा रंग-रुपादि का जो वर्णन उन्होंने किया है वैसा कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता । अठारह वर्ष की उम्र में सूरदास यमुना नदी के तट पर स्थित पवित्र स्नान स्थल गाऊघाट  पहुंचकर वल्लभाचार्य का शिष्य बन गया । गुरु ने उसे भागवत लीला का गुणगान करने की उपदेश दी ।  डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने सूर की काव्य कृतियों की विशेषता प्रकट करते हुए लिखा है कि सूरदास जब अपने प्रिय विषय का वर्णन शुरू करते हैं तो मानो अलंकार शास्त्र हाथ जोड़कर उनके पीछे-पीछे दौड़ा करता हैं । उपमाओं की बाढ़ आ जाती है और रूपकों की बारिश होने लगती हैं । साथ ही सूरदास ने भगवान कृष्ण के बाल्यकाल का अत्यंत मनोरम एवं सजीव वर्णन किया है।

 

 

 

 

 

 

सूरदास

श्रृंगार एवं वात्सल्य रस के चित्रण में सूरदास अद्वितीय है । वैसे बालक-मनोविज्ञान का आविष्कार सूर ने कितने सतर्कता से किया था, उतना अन्यत्र दुर्लभ है ।

श्रीकृष्ण के जीवन के महत्वपूर्ण संदर्भों का चित्रण सूर ने अपने ग्रंथों में अत्यंत आकर्षक एवं मार्मिक ढंग में किया है । ऐसा अनुपम वर्णन हिन्दी में अन्य किसी कवि ने नहीं किया है । काव्य में श्रृंगार एवं वात्सल्य रस के विन्यास में सूर सिद्धहस्त है ।  इसलिए उसे श्रृंगार एवं वात्सल्य रस  के सम्राट कहते है । सूर के काव्यों में ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली नैसर्गिक रूप में  बहती है । भाषा में ऐसा लालित्य एवं प्रभाव दूसरे कवियों में देखने को नहीं मिलता है । अतएव यों कहिए कि सूर हिन्दी साहित्य के सूरज है ।

सूरदास के ग्रंथ

सूरदास के तीन ग्रंथ प्रामाणिक माना जाता है –

1.सूरसागर

2.सूरसावली

3.साहित्य लहरी

1.सूरसागर

सूरसागर इतिहास काव्य श्रीमद्भागवत के आधार पर रचा गया महाकाव्य है । विद्वानों के मत में इसमें सवा लाख पद थे । अभी तक लगभग पाँच हजार पद संकलित कर प्रकाशित हो चुका है । इस महाकाव्य में बारह स्कन्ध है । इसका मुख्य वर्ण्य विषय श्री कृष्ण लीला है। साथ ही साथ विनय, वैराग्य, सत्संग एवं गुरु महिमा से संबंधित पद भी इसमें उपलब्ध है ।

2.सूर सारावली

सूर सारावली में भगवान कृष्ण कुरुक्षेत्र से लौटने के बाद की घटनाएँ,  संयोग लीला, वसंत हिंडोला एवं होली आदि प्रसंगों के वर्णन हुए है ।

3.साहित्य लहरी

साहित्य लहरी एक लघु ग्रंथ है । इसमें रस, अलंकार और नायिका-भेद आदि का वर्णन हुआ है। इसका मुख्य रस श्रृंगार है ।

मृत्यु

वल्लभाचार्य के पौत्र तथा विट्ठलनाथ के पुत्र गोकुलनाथ कृत चौरासी वैष्णवन की वार्ता के अनुसार सूरदास की मृत्यु सन् 1584 में गोवर्धन पहाड़ के निकट स्थित पारसौली (उत्तर प्रदेश में मथुरा जिले के गोवर्धन ग्राम से एक सवा मील दूर स्थित गाँव) में हुई ।

सूरदास के समय की सामाजिक परिस्थितियाँ

    आदि काल में उत्तर भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना हुई थी । हिन्दु लोग धीरे-धीरे   इसलाम धर्म की ओर आकृष्ट हुए थे । धर्मांतरण जोरों पर चले रहे थे । हिंदुओं में अंधविश्वास,  जाति-प्रथा, छुआछूत, विधवाओं के प्रति अन्यायपूर्ण व्यवहार आदि फैली हुई थी । अमानवीय व्यवहार सह सहकर निम्न जाति के लोगों के जीवन असह्य हो चुकी थी । बाल-विवाह, सती-अनुष्ठान आदि दुराचार चारों ओर प्रचलित थी । स्त्रियों को शिक्षा नहीं देती थी। पुरुष बहु विवाह कर आडंबरपूर्ण जीवन बिताते थे । इस समय हिंदू समाज की अवस्था बड़ी शोचनीय थी । भक्ति काल के पूर्वार्द्ध में समाज दो वर्गों में विभक्त हो चुकी थी । पहला उच्च कुल जात बादशाह, राजा, सेठ, साहूकार और सामंत आदि है । दूसरे वर्ग में किसान, मजदुर, पद-दलित जैसे साधारण लोग आते थे । तब सामाजिक बदलाव एक अनिवार्य विषय बना था ।

सूरदास के समय की राजनीतिक परिस्थितियाँ

राजनीतिक दृष्टि से देखें तो भक्ति काल में उत्तर भारत में तुगलक वंश से लेकर मुगल वंश के शासन काल रहे थे । इस काल में अधिकांशतः तुगलक और लोदी वंश के शासकों ने शासन करते थे । ये शासक अन्यायी और अधिकार-मोही थे । उनमें सांप्रदायिक चिंता प्रबल थी । एक ओर बादशाह अलाउद्दीन खिलजी जैसे शासक अत्याचार करते थे, दूसरी ओर साम्राज्य का सीमा विस्तार कर देते थे । इस समय कई हिंदुओं को इसलाम की ओर धर्मांतरण किया करते थे ‍। भक्ति कालीन राजनीतिक परिस्थितियाँ हिन्दुओं के लिए अनुकूल न था । भक्ति काल के शासक किसी न किसी बात पर परस्पर युद्ध करते थे । इन युद्धों के कारण धर्म और सीमा भी विस्तार होता था ।  इस समय को अशांति का काल कहना सर्वथा उचित हैं ।

सूरदास के समय की धार्मिक परिस्थितियाँ

भक्तिकाल धार्मिक दृष्टि में उन्नति का काल है । भक्ति आंदोलन का शुभारंभ दक्षिण भारत में हुआ। अतएव भक्ति आंदोलन दक्षिण भारत से उत्तर की ओर प्रवाहित हुई । तब हिन्दुओं में ही नहीं, मुसलमानों में भी धर्म के नाम पर कुछ अंधविश्वास जमे हुए थे । पूजा, नमाज, तीर्थ यात्रा, माला-जप, रोजा आदि कार्यक्रम भारी मात्रा में चलता था । पथ भ्रष्ट लोगों में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों और आडंबरों को रोकने में तत्कालीन संतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । इस कलुषित परिस्थिति में कबीर ने समाज सुधार का, तुलसीदास ने समन्वयवाद का और सूरदास ने भगवान कृष्ण का लोकरंजन रूप वर्णन द्वारा तत्कालीन वातावरण को बदलने के लिए भरसक प्रयत्न किया है ।

 सूरदास के समय की आर्थिक परिस्थितियाँ

सूरदास के समय लोगों की आर्थिक स्थिति बड़ी शोचनीय थी । इस समय के अधिकतर लोगों को जीने के लिए आवश्यक आमदनी न थी । खेतीबारी मुख्य नौकरी थी । धनिकों को कोई दुख-कष्ट न था । इसलिए धनिकों का जीवन आडंबर पूर्ण है तो दरिद्र अत्यंत संकटपूर्ण जीवन बिता करते थे ।

सूरदास के समय की सांस्कृतिक परिस्थितियाँ

इस काल को समन्वय संस्कृति के विकास का काल कहना उचित है । इस समय के कवियों ने भक्ति से उत्पन्न साहित्य को संगीत से जोड़ा था । तब संगीत और चित्रकला का खूब विकास हुआ था । मुगल शासक ने कला और संगीत के प्रोत्साहन किया था । हिन्दी के भक्ति काल साहित्य और सांस्कृतिक  के एकता का ज्वलंत उदाहरण हैं ।

सूरदास के समय की साहित्यिक परिस्थितियाँ

सूरदास के समय की राजभाषा फारसी थी । उच्च वर्ग के हिंदू लोग संस्कृत भाषा का अध्ययन करता था । उर्दू, सैनिकों की भाषा के रूप में विकसित हुए थे । वृंदावन में ब्रज भाषा और अवध में अवधी भाषा का प्रचार था । संत कवियों की बोलचाल की भाषा सधुक्कड़ी नाम पर उसके बीच प्रचलित थी ।

भक्ति काल में विविध प्रकार के काव्यों की रचना हो चुकी थी, जिसमें प्रबंध, मुक्तक और गीतिकाव्य मिल जाती है । इस काल के कवि निर्गुण और सगुण भक्त थे । यह कहना अनुचित न होता है कि इस समय के साहित्य मन, मस्तिष्क और ह्रदय की अशांति को शांति के रूप में परिवर्तित कर देता था ।

4.5.2 अन्य प्रमुख कवि

वल्लभाचार्य

पुष्टिमार्ग का संस्थापक महाप्रभु वल्लभाचार्य कृष्ण भक्ति धारा के महान नायक है । आचार्य वल्लभ का जन्म सन् 1479 में तथा मृत्यु 1531 में माना जाता है । उन्होंने अपने अनुयायियों को भगवान कृष्ण की सेवा में अपना सर्वस्व समर्पित करने का प्रोत्साहन किया । उनके सेवा कहे जाने वाले कृष्ण भक्ति पंथ आगे पुष्टिमार्ग के नाम से प्रसिद्ध हुए ।

व्यास सूत्र भाष्य, जैमिनी सूत्र भाष्य, भागवत टीका सुबोधिनी, पुष्य प्रवल मर्यादा, सिद्धांत रहस्य आदि कई कृतियाँ वल्लभाचार्य के नाम पर मिलती है । वे भाषा के रूप में संस्कृत और बृजभाषा को स्वीकार किया है ।

गोसाई विट्ठलनाथ

गोसाई विट्ठलनाथ महाप्रभु वल्लभाचार्य का द्वितीय पुत्र एवं कृष्ण भक्ति धारा के श्रेष्ठ सन्यासी भी है । उनका जन्म सन् 1515 में काशी में और मृत्यु सन् 1585 में मथुरा के गोवर्धन गिरी के गुफा में हुआ है । वल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक और अष्टछाप के स्थापक के रूप में हिन्दी साहित्य में विट्ठलनाथ का महत्वपूर्ण स्थान होता है । विट्ठलनाथ संगीत और चित्रकला में पारंगत थे । वे भक्ति मार्ग में जाति और वर्ण नहीं मानते थे । विट्ठलनाथ ने अपने पिताजी के चार शिष्यों (सूरदास, कुंभनदास, परमानंददास तथा कृष्णदास) और अपने चार शिष्यों (चतुर्भुजदास, गोविन्दस्वामी, नंददास तथा छीतस्वामी) को जुड़ाकर अष्टछाप नामक आठ कवियों का एक संघ स्थापित किया । अष्टछाप आगे कृष्ण भक्ति धारा को तेज़ी से प्रवहमान  बना दिया ।

चर्चा के मुख्य बिंदु 

भक्तिकाल धार्मिक दृष्टि में उन्नति का काल है ।

भक्ति काल में विविध प्रकार के काव्यों की रचना हो चुकी थी|

Critical Overview / आलोचनात्मक अवलोकन

भक्तिकाल के साहित्य मन, मस्तिष्क और हृदय की अशांति को
शांति के रूप में परिवर्तित कर देता था । भक्ति काल समन्वय
संस्कृति के विकास काल है।

Recap / पुनरावृत्ति

  • भक्ति काल के स्वर्णिम चमक के पीछे कई संतों, आचार्यों, महात्माओं एवं कवियों का महत्वपूर्ण योगदान हुआ है ।
  • सगुण या निर्गुण हो, राम भक्त हो या कृष्ण भक्त, ज्ञानमार्गी हो या प्रेममार्गी–उनकी निस्वार्थ कर्म से भक्ति-मुक्ति तथा शांति सर्वत्र व्याप्त हुई ।
  • अलग-अलग धारा बनकर बहने पर भी उसकी उद्भव और विलयन एक ही स्थान पर हुई । भक्ति अलग-अलग धारा बनकर बहने पर भी सब धाराएँ एक ही परमात्मा में विलीन हो गयी ।
  • सूरदास वल्लभ संप्रदाय व अष्टछाप के सर्वोच्च महात्मा एवं कवि है ।
  • सगुण भक्त सूर ने श्रीकृष्ण का जैसा मनोरम वर्णन किया है वैसा और किसी कवि नहीं किया है ।
  • उसकी कृष्ण भक्ति पुष्टि मार्गीय है, जिसकी तुलना करना व्यर्थ है ।
  • सूर के भीतर ही नहीं, उसके बोध-अबोध, दिन-रात, खान-पान, चाल-चलन, बात-चीत, वैयक्तिक-सामाजिक आदि हर कहीं सर्वत्र कृष्णमय था । उसकी सारी लक्ष्य कृष्ण भक्ति की पुष्टि और प्रचार-प्रसार है ।

Objective Questions / वस्तुनिष्ट प्रश्न

  1. सूरदास को हिंदी साहित्य में किस नाम से जाने जाते थे?
  2. सूर की अंधता के बारे में डॅा.श्यामसुदर दास का कथन क्या है?
  3. सूरदास के प्रामाणिक ग्रंथों के नाम बताइए ।
  4. सूरसागर का आधार ग्रंथ का नाम बताइए ।
  5. सूरसागर कितने स्कंधों में विभक्त है?
  6. साहित्य लहरी का मुख्य रस कौन सी है ?
  7. वल्लभाचार्य के कृष्ण भक्ति पंथ किस नाम से प्रसिद्ध है ?
  8. सूरदास के समय की राजभाषा कौन सी थी ?

Answer / उत्तर

  1. हिन्दी साहित्य के सूर्य कहे जाते थे |
  2. “सूर वास्तव में जन्मान्ध नहीं थे, क्योंकि श्रृंगार तथा रंग-रुपादि का जो वर्णन उन्होंने किया है वैसा कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता ।“
  3. सूरसागर ,सूरसावली, साहित्य लहरी
  4. सूरसागर इतिहास काव्य श्रीमद्भागवत के आधार पर रचा गया महाकाव्य है ।
  5. सूरसागर महाकाव्य में बारह स्कन्ध है ।
  6. साहित्य लहरी का मुख्य रस ‘श्रृंगार’ है |
  7. वल्लभाचार्य के कृष्ण भक्ति पंथ पुष्टिमार्ग नाम से प्रसिद्ध है |
  8. सूरदास के समय की राजभाषा फ़ारसी थी|

Assignment / प्रदत्तकार्य

  1. भक्ति मार्ग में सूर का स्थान निर्धारित करते हुए एक भाषण तैयार कीजिए ।
  2. अंधे की अंधता केवल बाहर ही है – इस विषय में टिप्पणी लिखिए ।

Self Assesment / आत्म मूल्याकन

  • सूरदास के जीवन परिचय ।
  • सूरदास की सबसे प्रसिद्ध रचना सूरसागर महाकाव्य है ।