इकाई : 5
सगुण भक्ति शाखा और उनकी प्रमुख विशेषताएँ
Learning Outcomes / अध्ययन परिणाम
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Prerequisites / पूर्वापेक्षा
सगुण भक्ति में मानव हृदय का विश्राम देख सकते है । सगुण काव्य में लीलावाद का महत्त्व है। सगुण भक्ति में श्रीकृष्ण और राम को विशेष स्थान है। कृष्ण काव्य में भगवान के मधुर रूप का उद्घाटन मिलता है । कृष्ण भक्ति पर आधारित काव्यों की एक लम्बी परंपरा है सगुण भक्ति। मर्यादा पुस्र्षोत्तम राम की पूजा सगुण भक्ति की एक विशेषता है। |
Key Themes / मुख्य प्रसंग
सगुण भक्तिधारा के सगुण रूप की उपासना के प्रति आस्था भाव व्यक्त किया गया है ।
राम भक्ती में श्रीरामचन्द्र को सृष्टि, स्थिति और संहार के अधिनायक के रूप में समर्थन ।
कृष्णभक्ति में श्रीकृष्ण को सृष्टि, स्थिति और संहार के अधिनायक के रूप में समर्थन ।
सुधारवादी दृष्टिकोण का प्रस्तुतीकरण ।
समन्वय भावना का प्रदर्शन ।
अहंकार एवं स्वार्थ भावना वर्जित करने का आह्वान ।
साहित्य में जनभाषा का उपयोग ।
लोक मंगल भावना की गूँज ।
जन सामान्य में परंपरा,धार्मिक मूल्य, संस्कृति तथा सभ्यता स्थापित करने का परिश्रम।
काव्य का उत्कर्ष ।
जीवन की नश्वरता पर अवबोधन ।
नश्वर जीवन को अनश्वर बना देने का सुगम मार्ग-दर्शन ।
Discussion / चर्चा
3.5.1 सगुण भक्ति काव्य – दो धाराएँ
सगुण भक्ति दो उपधाराओं में प्रवाहित हुआ – रामभक्ति और कृष्णभक्ति। पहले के प्रतिनिधि तुलसी हैं और दूसरे के सूरदास। कृष्णभक्ति शाखा के कवियों ने आनंदस्वरूप लीलापुरुषोत्तम कृष्ण के मधुर रूप की प्रतिष्ठा कर जीवन के प्रति गहन राग को स्फूर्त किया। इन कवियों में सूरसागर के रचयिता महाकवि सूरदास श्रेष्ठतम हैं जिन्होंने कृष्ण के मधुर व्यक्तित्व का अनेक मार्मिक रूपों में साक्षात्कार किया। ये प्रेम और सौंदर्य के निसर्गसिद्ध गायक हैं। कृष्ण के बालरूप की जैसी विमोहक, सजीव और बहुविध कल्पना इन्होंने की है वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलती| कृष्ण और गोपियों के स्वच्छंद प्रेमप्रसंगों द्वारा सूर ने मानवीय राग का बड़ा ही निश्छल और सहज रूप उद्घाटित किया है। यह प्रेम अपने सहज परिवेश में सहयोगी भाववृत्तियों से संपृक्त होकर विशेष अर्थवान् हो गया है। कृष्ण के प्रति उनका संबंध मुख्यत: सख्यभाव का है। आराध्य के प्रति उनका सहज समर्पण भावना की गहरी से गहरी भूमिकाओं को स्पर्श करनेवाला है। सूरदास वल्लभाचार्य के शिष्य थे। वल्लभ के पुत्र बिट्ठलनाथ ने कृष्णलीलागान के लिए अष्टछाप के नाम से आठ कवियों का निर्वाचन किया था। सूरदास इस मंडल के सर्वोत्कृष्ट कवि हैं। अन्य विशिष्ट कवि नंददास और परमानंददास हैं। नंददास की कलाचेतना अपेक्षाकृत विशेष मुखर है।
मध्ययुग में कृष्णभक्ति का व्यापक प्रचार हुआ और वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग के अतिरिक्त अन्य भी कई संप्रदाय स्थापित हुए, वे सब कृष्णकाव्य को प्रभावित किया। हितहरिवंश (राधावल्लभी संप्र.), हरिदास (टट्टी संप्र.), गदाधर भट्ट और सूरदास मदनमोहन (गौड़ीय संप्र.) आदि अनेक कवियों ने विभिन्न मतों के अनुसार कृष्णप्रेम की मार्मिक कल्पनाएँ कीं। मीरा की भक्ति दांपत्यभाव की थी जो अपने स्वत:स्फूर्त कोमल और करुण प्रेमसंगीत से आंदोतिल करती हैं। नरोत्तमदास, रसखान, सेनापति आदि इस धारा के अन्य अनेक प्रतिभाशाली कवि हुए जिन्होंने हिंदी काव्य को समृद्ध किया। यह सारा कृष्णकाव्य मुक्तक या कथाश्रित मुक्तक है। संगीतात्मकता इसका एक विशिष्ट गुण है।
कृष्णकाव्य ने भगवान् के मधुर रूप का उद्घाटन किया पर उसमें जीवन की अनेकरूपता नहीं थी| जीवन की विविधता और विस्तार की मार्मिक योजना रामकाव्य में हुई। कृष्णभक्तिकाव्य में जीवन के माधुर्य पक्ष का स्फूर्तिप्रद संगीत था, रामकाव्य में जीवन का नीतिपक्ष और समाजबोध अधिक मुखरित हुआ। एक ने स्वच्छंद रागतत्व को महत्व दिया तो दूसरे ने मर्यादित लोकचेतना पर विशेष बल दिया। एक ने भगवान की लोकरंजनकारी सौंदर्यप्रतिमा का संगठन किया तो दूसरे ने उसके शक्ति, शील और सौंदर्यमय लोकमंगलकारी रूप को प्रकाशित किया। रामकाव्य का सर्वोत्कृष्ट वैभव “रामचरितमानस’ के रचयिता तुलसीदास के काव्य में प्रकट हुआ जो विद्याविद् ग्रियर्सन की दृष्टि में बुद्धदेव के बाद के सबसे बड़े जननायक थे। पर काव्य की दृष्टि से तुलसी का महत्व भगवान् के एक ऐसे रूप की परिकल्पना में है जो मानवीय सामर्थ्य और औदात्य की उच्चतम भूमि पर अधिष्ठित है। तुलसी के काव्य की एक बड़ी विशेषता उनकी बहुमुखी समन्वयभावना है जो धर्म, समाज और साहित्य सभी क्षेत्रों में सक्रिय है। उनका काव्य लोकोन्मुख है। उसमें जीवन की विस्तीर्णता के साथ गहराई भी है। उनका महाकाव्य रामचरितमानस राम के संपूर्ण जीवन के माध्यम से व्यक्ति और लोकजीवन के विभिन्न पक्षों का उद्घाटन करता है। उसमें भगवान् राम के लोकमंगलकारी रूप की प्रतिष्ठा है। उनका साहित्य सामाजिक और वैयक्तिक कर्तव्य के उच्च आदर्शों में आस्था दृढ़ करनेवाला है। तुलसी की “विनयपत्रिका’ में आराध्य के प्रति, जो कवि के आदर्शों का सजीव प्रतिरूप है, उनका निरंतर और निश्छल समर्पणभाव, काव्यात्मक आत्माभिव्यक्ति का उत्कृष्ट दृष्टांत है। काव्याभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों पर उनका समान अधिकार है। अपने समय में प्रचलित सभी काव्यशैलियों का उन्होंने सफल प्रयोग किया। प्रबंध और मुक्तक की साहित्यिक शैलियों के अतिरिक्त लोकप्रचलित अवधी और ब्रजभाषा दोनों के व्यवहार में वे समान रूप से समर्थ हैं। तुलसी के अतिरिक्त रामकाव्य के अन्य रचयिताओं में अग्रदास, नाभादास, प्राणचंद चौहान और हृदयराम आदि उल्लेख्य हैं।
चर्चा के मुख्य बिंदु
सगुण भक्ति में गुरु महिमा का स्थान
सगुण भक्ति में ब्रह्मा के अवतार रूप की प्रतिष्ठा|
Critical Overview / आलोचनात्मक अवलोकन
सगुण भक्ति में ईश्वर की महिमा को अधिक स्थान दिया गयाहै। सगुण भक्तिधारा में सगुण रूप की उपासना के प्रति आस्था
भाव व्यक्त किया गया है ।
Recap / पुनरावृत्ति
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Objective Questions / वस्तुनिष्ट प्रश्न
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Answer / उत्तर
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Assignment / प्रदत्तकार्य
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Self Assesment / आत्म मूल्याकन
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Reference Books / सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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E- Content / ई : सामग्री
https://youtu.be/An3J2d6TfEA |