इकाई :6
प्रारंभिक हिंदी साहित्य की प्रवृत्तियां और शैलियां
Learning Outcomes / अध्ययन परिणाम
|
पूर्वापेक्षा : Pre – Requisites
काल विभाजन किसी युग विशेष में प्राप्त होने वाली रचनाओं की समान प्रवृत्ति विशेष के आधार पर किया हैै आदि काल के रचनाओं की विशेष प्रवृत्ति के अनुसार ही इसका नामकरण किया गया है । आदिकाल की विशे प्रवृर्ति के वर्णन के आधार पर उसका नामकरण हुआ है । |
Key Themes / मुख्य प्रसंग
वीर रस प्रधान प्रवृतियांं ।
अपभ्ंश भाषा की रचनाएं ।
वीर और श्रृंगार रस प्रधान रचनाएँ ।
Discussion / चर्चा
हिंदी साहित्य के प्रारंभिक काल में ,वीर गाथाओं का युग राजनीतिक दृष्टि से पतनोन्मुख , सामाजिक दृष्टि से दीन हीन तथा, धार्मिक दृष्टि से , क्षीण काल है । इस काल में जहां एक ओर जैन ,नाथ और सिद्ध साहित्य का निर्माण हुआ वहां दूसरी ओर राजस्थान में चारण कवियों द्वारा चरित काव्य भी रचे गये है ।
1.6.1 प्रारंभिक हिंदी साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियांसंदिग्ध रचनाएं ।
प्रारंभिक काल के प्रायः सभी रचनाओं की प्रामाणिकता संदेह की दृष्टि से देखी जाती है ।
-
ऐतिहासिकता का अभाव ।
प्रारंभिक काल के साहित्य में इतिहास की अपेक्षा कल्पना का बाहुल्य है ।
- युद्धों का सजीव वर्णन ।
प्रारंभिक काल के रचनाओं में युद्धम का वर्णन प्रमुख विषय है । युद्ध का वर्णन अत्यंत मूर्तिमान बिम्बग्राही रूप से हुआ है ।
- संकुचित राष्ट्रीयता ।
चारण कवियों ने अपने आश्रयदाता की प्रशंसा मुक्त कंठ से किया है । आजीविका प्राप्ति के लिए उसे अधिकारी राजाओं एवं सामंतों की प्रशंसा की हैै ।
- वीर और श्रृंगार रस ।
प्रारंभिक काल के साहित्य में वीर तथा श्रृंगार रस का सम्मिश्रण है ।
- प्रकृति चित्रण ।
प्रारंभिक काल के साहित्य में प्रकृति का आलंबन और उद्दीपन दोनों रूपों में चित्रण मिलता है ।
- रासो ग्रन्थ ।
प्रारंभिक काल के सभी ग्रंथों के नाम के साथ रासो शब्द जुड़ा हुआ है जो कि काव्य शब्द का पर्यायवाची है ।
- काव्य के दो रूप
प्रबंध और मुक्तक ।
- जन जीवन से संपर्क नहीं ।
प्रारंभिक काल के साहित्य सामंती जीवन उभर कर आया है । इनके जीवन के साथ कोई संबंध नहीं है ।
- छन्दों का विविध मुखी प्रयोग ।
छन्दों का जितना विविधमुखि प्रयोग इस साहित्य में हुआ है उतना इसके पूर्ववर्ती साहित्य में नहीं हुआ । दोहा , तोटक , तोमर ,गाथा , गाहा आदि छन्दों का प्रयोग बडी कलात्मकता के साथ किया गया है ।
- डिंगल और पिंगल भाषा का प्रयोग ।
प्रारंभिक काल के साहित्य की एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता है डिंगल भाषा का प्रयोग । प्रारंभिक काल के समय की अपभ्रंश साहित्यक भाषा पिंगल के नाम से अभिहित की जाती है ।
चर्चा के मुख्य बिंदु
वीरता प्रधान रचनाएं ,
वैविध्य पूर्ण छन्द ,
दोहा – चौपाई का अधिकाधिक प्रयोग ,
यत्र-तत्र प्रकृति चित्रण
Critical Overview / आलोचनात्मक अवलोकन
आदिकालीन साहित्य इतिहास तथा साहित्य दोनों दृष्टि से महत्व है । भाषा विज्ञान की दृष्टि से यह साहित्य अत्यंत उपादेय है । इसमें वीर तथा श्रृंगार रस का सुंदर परिपाक बन पड़ा है । निसंदेह इन ग्रन्थों में अतिरंजना पूर्ण शैली के प्रयोग से इतिहास दब – सा गया है ।
Recap / पुनरावृत्ति
|
Objective Questions / वस्तुनिष्ट प्रश्न
1. रासो काव्य किस काल के अंतर्गत आते हैं ? |
Answers / उत्तर
1. आदिकाल । |
Assignment / प्रदत्तकार्य
|
Self Assesment Questions / स्वमूल्यांकन प्रश्न
|
Reference Books / सन्दर्भ ग्रंथ सूची
1. हिन्दी साहित्य का इतिहास – आचार्य रामचंद्र शुक्ल । |
E- Content / ई : सामग्री
https://hi.wikipedia.org/wiki/आदिकाल |